श्री भागवत गीता
भाग.9
प्रभु जी निभाते हैं सच्चे सद्गुरू का नाता
बशर्ते आपके हृदय में सरलता, समर्पण, श्रद्धा और पूर्ण विश्वास भाव हो।
🙏
यदि आपके मन में अशान्ति अथवा प्रभु शरणागति से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो निःसंकोच इस ब्लाग पर टिप्पणी में लिखिएगा।
यथा संभव समय मिलते ही जवाब देने का प्रयास करूंगा।
आपके जीवन में शान्ति,मुक्ति, भक्ति (विशुद्ध प्रेम) और आनन्द हो यही मेरा कर्त्तव्य है,यही मेरी भगवद पूजा है।
ये अनुभव प्रसाद मैंने लगभग 8 वर्ष पूर्व फेसबुक पर तब शेयर किया था जब मैं कच्चा घड़ा था
उसी का कापी-पेष्ट है।
समय के अभाव में फेसबुक पर आने का समय नहीं मिलता है
क्योंकि नौकरी ही ऐसी है।
परन्तु
धैर्य रखना प्रभु जी ने मेरा नवनिर्माण आपके सेवार्थ ही किया है
बस आप की दुवाऐं और आषीश मिलती रहे।
सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
**"समर्पण की प्रार्थना एक बार जलार्पण करते हुए अवश्य कीजियेगा"**
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।
https://prabhusharanagti.blogspot.com/
भाग.9
प्रभु जी निभाते हैं सच्चे सद्गुरू का नाता
बशर्ते आपके हृदय में सरलता, समर्पण, श्रद्धा और पूर्ण विश्वास भाव हो।
🙏
यदि आपके मन में अशान्ति अथवा प्रभु शरणागति से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो निःसंकोच इस ब्लाग पर टिप्पणी में लिखिएगा।
यथा संभव समय मिलते ही जवाब देने का प्रयास करूंगा।
आपके जीवन में शान्ति,मुक्ति, भक्ति (विशुद्ध प्रेम) और आनन्द हो यही मेरा कर्त्तव्य है,यही मेरी भगवद पूजा है।
ये अनुभव प्रसाद मैंने लगभग 8 वर्ष पूर्व फेसबुक पर तब शेयर किया था जब मैं कच्चा घड़ा था
उसी का कापी-पेष्ट है।
समय के अभाव में फेसबुक पर आने का समय नहीं मिलता है
क्योंकि नौकरी ही ऐसी है।
परन्तु
धैर्य रखना प्रभु जी ने मेरा नवनिर्माण आपके सेवार्थ ही किया है
बस आप की दुवाऐं और आषीश मिलती रहे।
सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
**"समर्पण की प्रार्थना एक बार जलार्पण करते हुए अवश्य कीजियेगा"**
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।
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