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प्रेम,शांति, आनंद,मोक्ष और भगवत कृपा प्रदायिनी अनुभव और अनन्त भावपूर्ण प्रेरणाएं

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Thursday, March 12, 2020

पूर्ण समर्पण भाग-1

पूर्ण समर्पण
भाग .1



_/\_
बात उन दिनोँ की है जब प्रभु जी एक-एक कर
अपनी कई ज्ञान प्रदायिनी लीलाऐँ कर चुके थे
पड़ोस की एक बहन पर "ऊपरी(प्रेत)बाधा" थी

"कुछ भाई ,बहन भूत ,प्रेत आदि को नही मानते
होँगे
परन्तु एक सत्य ये भी है कि हम अपने प्रारब्ध
(भाग्य) का भोग इनके भी माध्यम से करतेँ हैँ ।
उस बहन की दुर्दशा की बातेँ सुन-सुन मुझे बड़ा
दुख होता । सुनने मेँ आया कि उसका जीवन भी
सँकट मेँ है ।
मैँ सोच मेँ पड़ गया कि यदि इस बहन को "प्रभु
शरणागति" के लिए प्रेरित करूँ तो शायद इसके
"प्रारब्ध"(भाग्य) से अनहोनी टल जाऐ और
होनी सहनशीलता के अनुकूल हो जाऐ ।
अब मेरे सम्मुख ये समस्या थी कि उस बहन के
हृदय मेँ "भगवत परायणता" का भाव कैसे प्रकट
करूँ ?
आखिर किसी से केवल इतना कहने मात्र से ही
कि "ईश्वर की शरण अपनाइए" भला क्योँ
अपनाऐगा ।
यदि मान भी जाऐ तो भी "समर्पण" हृदय की
भावपूर्ण पुकार(प्रार्थना) है
अतः सुनने वाले के हृदय मेँ भाव जाग्रत करने के
लिए
महज चार पन्नोँ मेँ ही "प्रभु प्रदत्त" अपनेँ
अनुभवोँ को निचोड़ कर अपने पड़ोसी बहन को दे
दिया ।
जिसे पढ़ कर ना केवल वो बहन प्रभावित हुई
बल्कि
उसकी छोटी बहन और मेरी भतीजियाँ भी
प्रभावित हो कर प्रभु सम्मुख समर्पण कर बैठीँ

उस पत्र की प्रभावशीलता कुछ अन्य करीबियोँ
पर भी देख मुझे भी कुछ ऐसा आभास होने लगा
कि
जैसे प्रभु जी ने जो अनुभव रूपी धन दिया है वो
बेहद अनमोल है
जिसे बाँट कर मैँ अपने सेवा धर्म का पालन कर
सकता हूँ ।
अब उसी पत्र की फोटो कापी करवा कर
करीबियोँ मेँ भी बाँटने लगा ।
गाँव गया तो भागवत कथा वाचक(ब्यास जी)
जो "कथा सम्राट शुक्ला जी" के नाम से मेरे
फेसबुक पर भी जुड़े हुए हैँ
उन्हेँ भी उसकी प्रतियाँ देते हुए आग्रह किया
कि - "वे जहाँ भी भागवत कथा कहेँ भक्तोँ
को"प्रभु शरणागति" के लिए अवश्य प्रेरित करेँ

जिसे पढ़ कर श्री ब्यास जी भावविभोर हो
अपनी स्वीकृति दे दी ।
जिससे मुझे अपार शान्ति मिली ।
इसी प्रकार रेलवे स्टेशन पर एक बुर्जुग
महात्मा दिखाई दिए जो धोती ,कुर्ता पहने
माथे पर तिलक लगाऐ हुए थे ।
पूछने पर पता चला वो शिछक थे ।
उन्हे भी वो प्रतियाँ देने की मँशा से सँकुचाते
हुए पूछ बैठा कि - "क्या आप ईश्वर मेँ विश्वास
करतेँ हैँ ?"
उत्तर मे वो महात्मन एक प्रभु कथा सुनाने लगे
-
"एक बार एक प्रभु भक्त किसी गाँव से गुजर
रहा था । जिसमेँ नास्तिक लोग रहते थे ।
कुछ नास्तिक भक्त को पत्थर मारने लगे ।
पत्थर लगते ही भक्त "हे कृष्ण" "हे कृष्ण"
पुकारने लगता ।
सँयोगवश प्रभु जी उस समय भोजन करने बैठे ही
थे कि भक्त की पुकार सुन उठ कर चल दिए
परन्तु कुछ दूर चल कर वापस लौट आऐ ।
इस पर रानियोँ ने प्रभु जी से इसका रहस्य
पूछा तो प्रभु जी बोले - "एक भक्त सँकट मेँ था
जो मुझे पुकार रहा था
परन्तु जब मैँ उसकी रछा के लिए जा रहा था
तो देखा कि उस भक्त ने मुझे पुकारना छोड़ स्वयँ
ही पत्थर उठा लिया ।
जब मैने देखा कि उस भक्त ने मुझ पर विश्वास
त्याग स्वयँ ही पत्थर उठा कर डट गया तो मुझे
वहाँ जाना उचित नही लगा ।
ये कथा सुनते ही मेरी आँखेँ अश्रुपात करने लगी
आँखोँ मेँ प्रभु लीला का वो दृष्य घूमने लगा जो
पूरी तरह इस कथा से मेल खा रहा था ।
एक बार जब मैँ प्रभु जी के
शिवलिँग रूप पर जल चढ़ा रहा था तो मैने
पाया कि मेरे एक कान से गाढ़ा पस(मवाद)
बहता हुआ टपकने को आतुर था । इस कान के
ईलाज के लिए पिछले पाँच साल से बहुत दवाइयाँ
खा चुका था यहाँ तक कि आपरेशन भी करवा
चुका था
परन्तु कान का बहना बन्द नही हुआ था ।
( _/\_प्रभु कृपा से मुझमेँ एक विशेषता ये रही है
कि मै
समस्त देवी देवताओँ मे एक ही प्रभु जी को
देखता रहा हूँ इस कारण मैँ प्रभु जी के समस्त
रूपोँ को माता श्री ,पिता श्री अथवा गुरूदेव
ही कहकर पुकारता रहा हूँ।)
बहते कान को देख
मै दुःख और छोभ मेँ पुकार उठा - "जाओ पिता
श्री अब मेरे वश मेँ नही है आपके इस शरीर को
सँभालना । बहुत दवा डाल और खा चुका । अब
इसे चाहे सड़ा दो चाहे गला दो शरीर आपका है
मर्जी आपकी है ।"
इतना कहते हुए जल
अर्पण कर मन्दिर से घर वापस आ गया ।
तत्पश्चात कान की ओर से ध्यान देना ही बन्द
कर दिया सप्ताह ,महीना ,साल बीत गये
परन्तु कान की ओर से कोई भी शिकायत ना
मिली ।
अब मै प्रभु जी की इस लीला के प्रति
चिन्तनशील था कि आखिर प्रभु जी का इस
लीला से क्या अभिप्राय था ।
परन्तु आज उन महात्मन के द्वारा इसका जवाब
मिल चुका था ।
अब तो आँशू भरी मेरी आँखेँ भी कहतीँ है कि
"शायद पूर्ण शरणागति की यही वो अवस्था है
जो प्रभु जी को द्रवित कर देती है ।"
किसी भी सँकट के प्रति पुरूषार्थ करना
प्रत्येक मनुष्य का धर्म है
परन्तु
अहँकार के वशीभूत होने के बजाय प्रभु
परायणता की भावना से पुरूषार्थ करेँ ।
ये मान कर कर्म करेँ आपके कर्मोँ मे प्रभु जी की
ही प्रेरणा है ।
आपके ये विश्वास निश्चय ही रँग लाऐगा क्यो
कि
"विश्वास मेँ ही परमात्मा का मूल वास है।"
आप सभी प्यारे व आदरणीय प्रभु भक्त भाई
,बहनोँ को सहृदय_/\_प्रणाम् ।
प्रभु जी आपका जीवन सार्थक करेँ ।
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।


https://prabhusharanagti.blogspot.com/

1 comment:

  1. सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
    जय जय श्री राधेकृष्णा।

    "समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
    क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
    उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
    अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
    तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
    क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
    जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
    भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
    जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

    "हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
    िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
    (जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
    1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
    इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
    2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
    मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
    शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
    अर्थात
    अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
    अतः
    समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
    प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
    इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
    ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
    जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
    ☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
    एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
    जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
    साथ ही
    ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
    वो जो भी करेंगे
    उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
    _/\_
    ।।जय श्री हरि।।

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🙏 धन्यवाद जी।
आपके कमेंट हमारे लिए प्रेरणा है।