भागवत गीता
भाग.22
मेरे प्यारे दोस्तों कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं है अभी भी वक्त है
आज ही एक अंजलि जल लेकर समर्पण का संकल्प कर ले,
क्यों कि
हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है
उसमें होनी और अनहोनी दोनों ही शामिल होता है
*होनी*--वह होती है जो हमारे पूर्वजन्मो के कर्मों के फल स्वरुप पहले ही निर्धारित होती हैं।
और
*अनहोनी*-- वह होती है जो अकस्मात घटित होती है
इसी सत्य का अनुभव करते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भी कहा है---
"तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए,
अनहोनी ना होय कभी होनी हो सो होय।
🙏
हे मेरे प्यारे दोस्तों इस इस समय मेरी स्वयं की आंखें भी लिखते हुए प्रभु जी की उन लीलाओं-कृपाओं का का स्मरण आते ही भगवत प्रेम से भाव विभोर होकर नम हो गई।
क्योंकि अब तक के जीवन में मेरे प्रभु जी ने मुझे उसी प्रकार संभाला और संवारा जैसे एक माता अपने शिशु को संभालती, संवारती, और सुरछा करती है।
मेरा विश्वास कीजिए मैं पिछले 20 वर्षों से इसी विषय पर ही शोध करता रहा हूं
चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा किसी अन्य पंथ का हो सब पर यह समर्पण भाव प्रभावी होता हैं बशर्ते---
"हमारे समर्पण का भाव पूरी तरह निष्पक्ष हो"
_/\_
जय जय श्री राधेकृष्णा मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ ।
"प्रभु शरण परम हितकारी"
"हे प्रभु" आपकी इस माया सँसार मेँ मेरा मन सदैव विषय-विकारोँ मेँ ही डूबा रहता है
दुर्भावनाओँ की प्रबलता सदैव पापाचरण को विवश करतीँ है
अतः "हे दीनदयालु ","हे जगतश्रेष्ठ" मैँ अपना सबकुछ हार कर आपकी शरण आया हूँ नाथ ।
मुझ अधर्मी ,पाप के भागी को अब आपका ही आसरा है
"हे कृपासिन्धु" मेरे इस तुच्छ समर्पण को स्वीकार कर अपनी माया से अभयता दीजिए ।
"दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ ।"
_/\_
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ,
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
पन्थ मतो की सुन-सुन बातेँ ,
द्वार तेरे तक पहुँच ना पातेँ ।
भटके बीच जहाँन तुम्हरी शरण पड़े ।
तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी ,
राम तू ही गणपति त्रिपुरारी ।
तुम ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ।
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
"प्रभु शरण अपनाऐँ ,
प्रेम,शान्ति,मुक्ति सहज पाऐँ ।"
_/\_
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।
भाग.22
मेरे प्यारे दोस्तों कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं है अभी भी वक्त है
आज ही एक अंजलि जल लेकर समर्पण का संकल्प कर ले,
क्यों कि
हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है
उसमें होनी और अनहोनी दोनों ही शामिल होता है
*होनी*--वह होती है जो हमारे पूर्वजन्मो के कर्मों के फल स्वरुप पहले ही निर्धारित होती हैं।
और
*अनहोनी*-- वह होती है जो अकस्मात घटित होती है
इसी सत्य का अनुभव करते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भी कहा है---
"तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए,
अनहोनी ना होय कभी होनी हो सो होय।
🙏
हे मेरे प्यारे दोस्तों इस इस समय मेरी स्वयं की आंखें भी लिखते हुए प्रभु जी की उन लीलाओं-कृपाओं का का स्मरण आते ही भगवत प्रेम से भाव विभोर होकर नम हो गई।
क्योंकि अब तक के जीवन में मेरे प्रभु जी ने मुझे उसी प्रकार संभाला और संवारा जैसे एक माता अपने शिशु को संभालती, संवारती, और सुरछा करती है।
मेरा विश्वास कीजिए मैं पिछले 20 वर्षों से इसी विषय पर ही शोध करता रहा हूं
चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा किसी अन्य पंथ का हो सब पर यह समर्पण भाव प्रभावी होता हैं बशर्ते---
"हमारे समर्पण का भाव पूरी तरह निष्पक्ष हो"
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जय जय श्री राधेकृष्णा मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ ।
"प्रभु शरण परम हितकारी"
"हे प्रभु" आपकी इस माया सँसार मेँ मेरा मन सदैव विषय-विकारोँ मेँ ही डूबा रहता है
दुर्भावनाओँ की प्रबलता सदैव पापाचरण को विवश करतीँ है
अतः "हे दीनदयालु ","हे जगतश्रेष्ठ" मैँ अपना सबकुछ हार कर आपकी शरण आया हूँ नाथ ।
मुझ अधर्मी ,पाप के भागी को अब आपका ही आसरा है
"हे कृपासिन्धु" मेरे इस तुच्छ समर्पण को स्वीकार कर अपनी माया से अभयता दीजिए ।
"दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ ।"
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उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ,
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
पन्थ मतो की सुन-सुन बातेँ ,
द्वार तेरे तक पहुँच ना पातेँ ।
भटके बीच जहाँन तुम्हरी शरण पड़े ।
तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी ,
राम तू ही गणपति त्रिपुरारी ।
तुम ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ।
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
"प्रभु शरण अपनाऐँ ,
प्रेम,शान्ति,मुक्ति सहज पाऐँ ।"
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।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।
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🙏 धन्यवाद जी।
आपके कमेंट हमारे लिए प्रेरणा है।