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प्रेम,शांति, आनंद,मोक्ष और भगवत कृपा प्रदायिनी अनुभव और अनन्त भावपूर्ण प्रेरणाएं

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Thursday, March 19, 2020

पूर्ण समर्पण भाग.2

ॐ।श्री कृष्णा शरणं ममः।ॐ
"पूर्ण समर्पण" और "निष्काम भक्ति"
भाग.2

_/\_
एक बार एक पण्डित जी बुलावे पर मेरे घर मेरे
बड़े भैया जी को देखने आए ।

भैया जी को ऊपरी चक्कर की समस्या थी
मानसिक स्थिति असन्तुलित होने के कारण घर
के हालात ठीक नही थी ।

पण्डित जी पड़ोस मेँ रहते थे जो कि निःशुल्क
झाड़फूक करते थे

इस कारण मेरा हृदय उनसे प्रभावित था
मुझमेँ एक बुरी आदत है कि जब मैँ किसी विशिष्ट
ब्यक्ति से मिलता हूँ
तो
उन्हे प्रभु प्रसाद रूपी अनुभवोँ के माध्यम से
"प्रभु शरणागति" भाव अपनाने और अन्य लोगोँ
मेँ बाँटने के लिए प्रेरित करता हूँ


अपनी इस क्रिया को मैँ अपने जीवन का मूल
धर्म अर्थात कर्तब्य मानता हूँ ।
क्योँ कि
अब तक के मेरे समस्त प्रभु प्रदत्त अनुभव इसी
कर्म को जीवन का सर्वश्रेष्ठ कर्म सिद्ध करतेँ
हैँ ।


जब पण्डित जी अपनी क्रिया सम्पादित कर
चाय पी रहे थे
तब मैने उनकी अनुमति ले कर प्रभु शरणागति
भावना की विशिष्टता पर बात शुरु की ।

परन्तु मेरी प्रेरणाओँ का पण्डित जी पर
विरीत प्रभाव पड़ा ।

अचानक बोल उठे - "तुम्हे अपने ज्ञान का
अहँकार है"

ये सुन कर मैँ अन्दर तक काँप गया और अपने मन
को टटोलने लगा
परन्तु ऐसा कोई अहँकारी तत्व नही मिला
ये बोध जरूर हुआ कि मैने बात की शुरूआत ही
गलत की थी ।

इतने मेँ पण्डित जी फिर बोले - "मैँ देख रहा हूँ
तेरे ऊपर बहुत दुख हैँ । तू इनकी (श्री भगवान
की फोटो दिखाते हुए) पूजा करता है तू इनसे
माँग ।"

मैने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया - "जब
इनकी कृपा-करूणा से सुख और दुख की मनोवृत्ति
से ही निजात मिल गई है
तो फिर इन दुःखद परिस्थितियोँ से कैसा भय
और किस लिए माँगूँ ।

इतना कहते-कहते मैँ प्रभु प्रेम मे भावुक हो उठा
था
क्योँ कि उनकी लीलाऐँ-कृपाऐँ मानसिक पटल
पर तैरने लगीँ थी ।


अब पण्डित जी अपनी बात पर जोर देते हुए
फिर बोले - "अरे तू इनकी पूजा करता है ,माँगने
का अधिकार है तुझे , तू माँग इनसे ।"


पण्डित जी की बात सुनते ही मेरी भावना का
बाँध टूट पड़ा ,मेरी आँखेँ सजल हो उठी ।
भावुक कण्ठ से मैने कहा - "प्रभु प्रेम मे थोड़ा
सा जल और धूपबत्ती क्या चढ़ा देता हूँ तो क्या
अब अपने प्रेम की कीमत माँगूँ ।"

"नही पण्डित जी मेरे प्राण भी चले जाऐँगे तो
भी ये सम्भव नही है ।"
और

अचानक मैँ अपनी जगह से उठा और पण्डित जी
का पैर पकड़ते हुए कहा - "मान लीजिए आप मेरे
पिता हैँ और दैवीय गुणोँ से सम्पन्न मन की बात
भी जानने वाले है । मेरे लिए क्या अच्छा और
क्या बुरा इसकी पहचान आपको भलीभाँति है
और मैँ अज्ञानी आपसे पैर पकड़ कर कहूँ कि "हे
पिता जी" मेरे जीवन का समस्त भार आपकी
इच्छा पर निर्भर है
आप मुझे जिसके योग्य समझेँ वही प्रदान करेँ ।
तो
ऐसे मेँ आप क्या करेँगे ??
और
ऐसे मेँ यदि आपके द्वारा प्रदान किए गये
अवस्थाओँ ,ब्यवस्थाओँ के प्रति असन्तुष्ट हो मैँ
अपने मतानुसार आपसे माँग करू तो मेरा आपके
प्रति पूर्ण विश्वास और समर्पण कहाँ रहा ।

इसी प्रकार जब मैने सर्वब्यापी ,जगतश्रेष्ठ
,समस्त सृष्टि आधार को ही अपने जीवन का
समस्त भार सौँप दिया है
तो
फिर मुझे अपने मानसिकता के अनुरूप माँगने का
अधिकार ही कहाँ रहा ।
और
यदि माँगता हूँ तो अपने "प्रभु की प्रभुता" पर
विश्वास ही कहाँ रहा ।
जब कि प्रभु जी पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से
ही प्राप्य हैँ ।


जाते-जाते पण्डित जी कहने लगे - "मेरी बातोँ
को समझो ये मैँ नही कह रहा हूँ " मैँ तुम्हे एक
सप्ताह का समय दे रहा हूँ ,मेरी बात समझ आऐ
तो मेरे पास आ जाना।"
मैँ समझ गया था पण्डित जी का इशारा अपने
ऊपर सिद्ध किये गये देवता की ओर है ।

परन्तु

मैँ करता भी क्या प्रभु जी के द्वारा बनाया
गया ये घड़ा शायद बहुत ठोस था जो मृत्युसम
परिस्थितियोँ को सहजता से सहन कर गया ।



_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ ,बहनोँ  "पूर्ण समर्पण" अपने प्रभु की प्रभुता पर "पूर्ण विश्वास" और "निःस्वार्थ प्रेम" का प्रतीक होता है ।

जिस भक्त मेँ ये दोनोँ भाव हो तो प्रभु जी
अपने ऐसे भक्त का कल्याण कर परम शान्ति और
मोछ प्रदान करतेँ हैँ ।

क्योंकि ऐसे भक्तों को अपने प्रभु की न्याय प्रणाली पर पूर्ण विश्वास होता है।


जब किसी भक्त पर प्रभु जी की विशेष कृपा
होती है तो
प्रभु जी उसे अपनी शान्ति और मोछप्रदायिनी
निष्काम भक्ति और निष्काम कर्म की भावना
प्रदान कर देतेँ है

जिसके फलस्वरूप ऐसा भक्त अपने प्रारब्ध
(भाग्य) को शान्ति पूर्वक भोगते हुए नवीनतम
प्रारब्ध चक्र से मुक्त रहता है ।
और जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति पाता है ।



_/\_
हे मेरे प्यारे दोस्तों
 मेरे समस्त प्रेरणात्मक पोस्ट उस
निश्छल भाव से किये गये "समर्पण" और "जीवन
के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की प्रार्थना"
के फलस्वरूप ही है ।

मान ,सम्मान अथवा लाइक की तृष्णा से रहित
केवल आपके जीवन को शान्तिमयी और सार्थक
करने हेतु ही नौकरी से बचा समय सोशल मीडिया पर
देता हूँ।


यदि आपका हृदय एक बार भी पूर्ण विश्वास और
श्रद्धा से भाव-विभोर हो पुकार उठे - "हे
दीनदयाल" "हे समस्त सृष्टि के स्वामी" "हे
जगतपिता" मुझ मूर्ख ,अज्ञानी ,पाप के भागी
को भी अपनी शरणागति दीजै ।
तो
यकीन मानिए प्रभु जी ने अपनी "भगवद
वाणी" मेँ जो विशेष सँदेश दिया है

वो केवल सँदेश नही एक महान कृपा रूपी अवसर
है शान्ति और मोछ प्राप्ति का -
Bhagwat-gita-peace-of-Mind


"सर्वधर्मान
परित्यज्यै ,
मामेकं शरणं ब्रिज ।
अहँत्वा सर्वपापेभ्योः ,
मोछश्चामि माशुचा ।"
अतः
"प्रभु शरणागत बनेँ-बनाऐँ ,
अपना व अपनोँ का जीवन सफल बनाऐँ ।"
प्रभु जी आपको अपनी निर्मल भक्ति प्रदान
करेँ ।
_/\_
सभी आदरणीय व प्रिय मित्रोँ को सहृदय
प्रणाम् ।
जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की ।।





🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏







सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।


"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं


भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -


1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"


शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।


इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।


☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆


साथ ही

ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और
नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

परमात्मा भी निभाते हैं सच्चे गुरु की भूमिका

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आपके कमेंट हमारे लिए प्रेरणा है।