भागवत गीता
भाग 19
मन की अशांति के अनंत कारण होते हैं परंतु निदान बहुत ही सहज और सरल है वह है *परमात्मा की शरणागति"
मेरे प्यारे भाइयों बहनों मन की शांति पाना भले ही हमें असंभव दिखाई दे,
परंतु
मन की शांति प्रदान करना परमात्मा के लिए असंभव नहीं है
मेरे गुरुदेव"श्री भगवान" ने मुझे अनुभव और उदाहरण स्वरूप न केवल दुर्लभ आध्यात्मिक स्थितियां प्रदान की
बल्कि
बड़े विचित्र ढंग से जनसेवार्थ "समर्पण भाव" बांटने के लिए संकल्पबद्ध भी कराया।
मेरा लक्ष्य आपके जीवन में शांति के साथ साथ उन आध्यात्मिक कृपाओं का भी उद्गम कराना है जो कि अति दुर्लभ और अति आवश्यक भी है
"समर्पण भाव" कोई पूजा पाठ अथवा योग साधना नहीं
यह परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने का एक विशुद्ध भाव मात्र है।
एक बार आजमा कर अवश्य देखें
मन के शांति की सौ परसेंट गारंटी है।
🙏
प्रभु जी ने मेरा नवनिर्माण अपने भक्तों की सेवा हेतु किया है
अतः आप मुझे अपना सेवक ही जाने।
आपका अपना एक प्रभु शरणागत सेवक।
।। जय जय श्री सीताराम।।
(प्रभु जी भी निभाते हैं सच्चे गुरु की भूमिका)--
prabhusharanagti.blogspot.com
भाग 19
मेरे प्यारे भाइयों बहनों मन की शांति पाना भले ही हमें असंभव दिखाई दे,
परंतु
मन की शांति प्रदान करना परमात्मा के लिए असंभव नहीं है
मेरे गुरुदेव"श्री भगवान" ने मुझे अनुभव और उदाहरण स्वरूप न केवल दुर्लभ आध्यात्मिक स्थितियां प्रदान की
बल्कि
बड़े विचित्र ढंग से जनसेवार्थ "समर्पण भाव" बांटने के लिए संकल्पबद्ध भी कराया।
मेरा लक्ष्य आपके जीवन में शांति के साथ साथ उन आध्यात्मिक कृपाओं का भी उद्गम कराना है जो कि अति दुर्लभ और अति आवश्यक भी है
"समर्पण भाव" कोई पूजा पाठ अथवा योग साधना नहीं
यह परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने का एक विशुद्ध भाव मात्र है।
एक बार आजमा कर अवश्य देखें
मन के शांति की सौ परसेंट गारंटी है।
🙏
प्रभु जी ने मेरा नवनिर्माण अपने भक्तों की सेवा हेतु किया है
अतः आप मुझे अपना सेवक ही जाने।
आपका अपना एक प्रभु शरणागत सेवक।
।। जय जय श्री सीताराम।।
(प्रभु जी भी निभाते हैं सच्चे गुरु की भूमिका)--
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
ReplyDeleteजय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।https://prabhusharanagti.blogspot.com/