परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.27 और अनमोल प्रेरणाएं
- "चरित्र तथा आबरू की रक्षा-सुरक्षा और प्रभु शरणागति"
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मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ आज के दौर मेँ समाज मेँ
चरित्र हीनता ,बलात्कार ,छेड़छाड़ व अन्य
दुष्प्रवृत्तियाँ बहुत ही सामान्य हो चली है ।
हमारे मन की दुर्भावनाऐँ ही हमेँ डुबोने के लिए
प्रयाप्त है
ऐसे में समाज में व्याप्त आपराधिक वृत्तियों से सुरक्षित रह पाना तो दूर की बात है ।
इसलिए यदि आप अपना और अपनोँ का चरित्र सुरछित
चाहतेँ है तोँ
सौँप दीजिए अपने जीवन की पतवार प्रभु जी के
हाथोँ मेँ ।
मेरा दावा है यदि आपने हृदय के सच्चे भाव से
प्रभु जी को सर्वश्रेष्ठ और सर्वसछम मानकर
अपने जीवन की पतवार प्रभु जी को सौँप देँगे
तो
ये निश्चित ही मानिए कि आपका दामन सदा
बेदाग ही रहेगा ।
हमारे चरित्र पर खतरा ना तो भीतर से रहेगा
और ना ही बाहर से ।
क्योँ कि प्रभु जी का वास प्रत्येक घट मेँ है
इस कारण किसी दूसरे के हृदय मेँ हमारे प्रति
दुर्भावना प्रकट नही होती
यदि हो भी जाऐ तो सफलता नही मिलती है ।
दूसरी तरफ हमारा मन भावनाओँ का सागर
होता है
जो जिसकी लहरेँ हमेँ डुबोने के लिए प्रयाप्त हैँ
परन्तु
जब हम अपने जीवन का समस्त दायित्व(ज्ञान
,बुद्धि ,कर्ता भाव) प्रभु जी को अपर्ण कर देतेँ
हैँ
तो प्रभु जी की अनन्य कृपा से हमारी मन की
गुलामी की बेड़ियाँ टूटने लगतीँ है
और हम अन्तरात्मा के निर्देशानुसार कर्म करने
लगतेँ है
ये तो जगजाहिर है कि अन्तरात्मा सदैव हमेँ
सत्य ,धर्म और उचित मार्ग दर्शन ही देती है ।
विशेष बात ये है कि अब तक बाँटे गये "समर्पण"
की प्रेरणाओँ के फलस्वरूप प्रभु जी के
"श्रद्धावान" मन के मत को त्याग अन्तरात्मा
की प्रेरणाओँ पर चलने लगतेँ हैँ
इसी कारण मैँ स्वयँ भी कभी-कभी इस सोच मेँ
पड़ जाता हूँ कि
कही ये अन्तरात्मा की आवाज ही परमात्मा
की आवाज तो नही है ?
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हे मेरे प्यारे भाइयोँ ,बहनोँ मेरे समस्त पोस्ट
,प्रेरणाऐँ केवल अनुभवोँ के आधार पर ही होते है
यदि मेरे अब तक के जीवन मेँ एक भी ऐसी घटना
होती जो मेरे चरित्र को कलँकित करती तो
निश्चय ही मानिए
आज मैँ सोशल मीडिया पर ही ना होता ।
बचपन मेँ माँ के द्वारा कराये गये "जल के साथ समर्पण और युवा अवस्था मेँ हृदय की प्रेरणा से किये गये समर्पण ने मुझे सदैव सँभाल कर रखा
इन्सान को इन्सानियत से भटकाने वाली भावनाऐं मुझमेँ भी प्रयाप्त थी और परिस्थितियाँ भी पनपती रहीँ
परन्तु
ये भगवद कृपा ही थी जो उन विषैली ,वेगवान
स्थितियोँ-परिस्थितियोँ से जीवन मेँ अनेकोँ
बार घिरा होने के बाद भी स्वयँ के चरित्र को
सुरछित को सुरछित और बेदाग ही पाता हूँ ।
उन परिस्थितियोँ का अवलोकन करता हूँ तो
मुझे केवल भगवद कृपा ही दिखाई देती है ।
अतः मेरा सभी माताओँ ,बहनोँ और भाइयोँ से
एक ही अनुरोध है कि निश्छल ,निष्काम भाव से
प्रभु सम्मुख "समर्पण" करेँ
और
बच्चोँ से भी उसी
प्रकार करायेँ
जैँसे मेरी माता जी ने किसी महात्मा की
प्रेरणा से मुझसे कराया था -
"प्रातः स्नान के पश्चात एक लोटा जल लेकर
जगतपिता का स्मरण करते हुए किसी स्वच्छ
स्थान अथवा शिवलिँग पर जल चढ़ाते हुए
प्रार्थना करेँ कि -
"हे जगतपिता" "हे जगदीश्वर" मै जैसा भी हूँ
खोटा या खरा अब स्वयँ को आपके श्री चरणोँ मेँ
अर्पण करता हूँ ।"
"हे नाथ" अपनी समस्त इच्छाऐँ कामनाऐँ आपके
श्री चरणोँ मेँ अर्पण करता हूँ
मेरे लिए क्या अच्छा ,क्या बुरा अब आपकी
जिम्मेदारी । अब मैँ आपका शरणागत हूँ
"दीनदयाल" ।"
छोटे बच्चोँ के लिए थोड़ा सहज होगा ये
प्रार्थना -
"हे भगवान इस जीवन नैइया की पतवार अब
आपको सौँपता हूँ इसे आप ही सम्भालिए ।"
हम बच्चोँ के भाग्य निर्माता तो नही हो सकते
परन्तु उन्हे प्रभु शरणागति की प्रेरणा देकर
उनके जीवन के दुर्भाग्य को टालने का माध्यम
अवश्य बन सकतेँ हैँ ।
कृपया शँका ना कीजिएगा कि ऐसा करने से बच्चे
साधु-सन्यासी हो जाऐँगे
क्योँ कि मैँ स्वयँ भी एक गृहस्थ हूँ
प्रभु जी भी अपने शरणागतोँ को तन से नही
बल्कि
मन से सन्यासी बना देते है
जिसके फलस्वरूप हम काम , क्रोध ,लोभ ,मोह
और अहँकार के चँगुल से सुरछित रहते हुए अपने
धर्मो(कर्तब्योँ) का भलीभाँति पालन कर पातेँ
हैँ ।
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प्रभु जी ने भागवद गीता के माध्यम से हमेँ जो
महान अवसर दिया है उसे ब्यर्थ ना गँवाऐँ -
"सर्वधर्मान परित्यजै ,
मामेकं शरणं ब्रिज ।
अहँत्वा सर्व पापेभ्योः ,
मोछश्चामि माशुचा ।
अतः अपने हृदय की समस्त शँकाओँ-कुशँकाओँ को
मिटा कर प्रभु शरण अपनाऐँ
और अपना जीवन शान्तिमय व सफल बनाऐँ।
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"प्रभु जी आपको अपना निर्मल आश्रय प्रदान
करेँ"
सभी प्यारे व आदरणीय भाइयोँ ,बहनोँ को
सादर सहृदय ,सप्रेम_/\_नमन ।
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।
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🙏 धन्यवाद जी।
आपके कमेंट हमारे लिए प्रेरणा है।