श्री भागवत गीता भाग.25
🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।
भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।
मुझे अच्छी तरह याद है
जब मैंने पहली बार श्री कृष्णा के भागवत गीता पार्ट का आखिरी भाग देखकर फूट-फूटकर रो पड़ा था
इसमें भगवान श्री कृष्ण स्वरूप में
भगवत कृपा प्राप्ति का सरलतम उपाय
*समर्पण* को ही सहज और सुलभ मार्ग बता रहे थे।
अब क्योंकि श्री भगवान के अनमोल कृपाओं और कारण को अपने निजी जीवन में अनुभव कर चुका था।
इसलिए मैं यह सोचकर बहुत ज्यादा हैरान भी था कि-:
"मात्र एक समर्पण से भगवत कृपा इतनी सहजता और सरलता से मिल जाती है फिर भी इंसान क्यों भटकते रहते हैं ?"
मेरे प्यारे भाइयों बहनों अपने मन के इस सवाल का उत्तर तो उस समय नहीं समझ पाया था
परंतु धीरे-धीरे जीवन के अन्य अनुभव के द्वारा जो ज्ञान श्री भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ
वह यही है कि हम सभी अहंकार रूपी माया के अधीन होते हैं
हमारे भीतर परमात्मा के प्रति पूर्ण श्रद्धा ,विश्वास और हमारे मन में सरलता का अभाव होता है ।
माया का प्रभाव ऐसा होता है कि यदि आपके सम्मुख भगवान भी आकर आप को समझाएं फिर भी आपके हृदय में वह बातें नहीं बैठेंगे जो आपके जीवन को बदल सकती हैं।
उदाहरण स्वरूप आप नीचे दिए गए अनमोल प्रेरणा को ही ले लीजिएगा
जिसे मैं केवल जन सेवार्थ भगवत प्रसाद मानकर बांट रहा हूं
परंतु
हमारे कई समझदार भाई बहन इसे धार्मिक प्रचार अथवा माया जनित मानसिकता समझकर नजरअंदाज कर देंगे।
हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण केवल 2 मिनट का होता है परंतु तर्क कुतर्क में ऐसे लोग घंटों गवा देंगे।
मेरा विश्वास कीजिए मैं जनसेवार्थ संकल्पबद्ध हूं
इसी कारण ही फेसबुक सोशल मीडिया आदि के माध्यम से केवल समर्पण भाव ही बांटने का प्रयास करता रहता हूं
समर्पण मैंने सभी धर्म वर्ग के लोगों पर प्रभावशील होते हुए देखा है
आप भी आजमा कर एक बार अवश्य देखिएगा
तर्क-कुतर्क तो अपने ज्ञान की श्रेष्ठता अर्थात अहंकार का लक्षण होता है इसलिए सावधान रहिएगा।
🙏
धर्म का प्रचार नहीं यह आपके सेवार्थ है
*भगवत प्रसाद*
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सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
शंका ना करना
ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।
4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।
प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं
ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।
आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।
जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
Surrender of God |
समर्पण में परमात्मा के प्रति केवल भाव से स्वयं को अर्पण ही करना होता है
शेष कार्य प्रभु जी स्वयं कर और करा देते हैं।
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।।जय श्री हरि।।