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प्रेम,शांति, आनंद,मोक्ष और भगवत कृपा प्रदायिनी अनुभव और अनन्त भावपूर्ण प्रेरणाएं

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Thursday, May 14, 2020

10:26 PM

सच्चा गुरु खोजने के लिए मोटीवेशनMotivation to Find a True Guru






सादर सहृदय_/\_प्रणाम प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"

शंका ना करना बहन ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।


"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"

(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -


1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।





2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।


इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है

वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।






आपके इस सेवक का प्रयास -
"परमात्मा के द्वारा आपके जीवन में शांति ,प्रेम और आनंद का विस्तार।


आपके शंका, समाधान और सुझावों को कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें।
जिससे हमें अधिक से अधिक प्रसन्नता और प्रेरणा भी मिलेगी।

Saturday, April 18, 2020

5:41 PM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.28

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता)

भाग.28






https://prabhusharana.blogspot.com/


🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।
भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


शंका ना करना
  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।

क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -

https://prabhusharana.blogspot.com/


1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।



प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।


कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

समर्पण में परमात्मा के प्रति केवल भाव से स्वयं को अर्पण ही करना होता है
शेष कार्य प्रभु जी स्वयं कर और करा देते हैं।



_/\_
।।जय श्री हरि।।


🙏 आपके इस सेवक का प्रयास - "परमात्मा के द्वारा आपके जीवन में शांति ,प्रेम और आनंद का विस्तार। 🙏 आपके शंका, समाधान और सुझावों को कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें। जिससे हमें अधिक से अधिक प्रसन्नता और प्रेरणा भी मिलेगी।

Tuesday, April 14, 2020

2:25 AM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.27 और अनमोल प्रेरणाएं

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.27   और  अनमोल प्रेरणाएं




  • "चरित्र तथा आबरू की रक्षा-सुरक्षा और प्रभु शरणागति"

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_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ आज के दौर मेँ समाज मेँ
चरित्र हीनता ,बलात्कार ,छेड़छाड़ व अन्य
दुष्प्रवृत्तियाँ बहुत ही सामान्य हो चली है ।
हमारे मन की दुर्भावनाऐँ ही हमेँ डुबोने के लिए
प्रयाप्त है
 ऐसे में समाज में व्याप्त आपराधिक वृत्तियों से सुरक्षित रह पाना तो दूर की बात है ।


इसलिए यदि आप अपना और अपनोँ का चरित्र सुरछित
चाहतेँ है तोँ
सौँप दीजिए अपने जीवन की पतवार प्रभु जी के
हाथोँ मेँ ।

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मेरा दावा है यदि आपने हृदय के सच्चे भाव से
प्रभु जी को सर्वश्रेष्ठ और सर्वसछम मानकर
अपने जीवन की पतवार प्रभु जी को सौँप देँगे
तो
ये निश्चित ही मानिए कि आपका दामन सदा
बेदाग ही रहेगा ।

हमारे चरित्र पर खतरा ना तो भीतर से रहेगा
और ना ही बाहर से ।

क्योँ कि प्रभु जी का वास प्रत्येक घट मेँ है
इस कारण किसी दूसरे के हृदय मेँ हमारे प्रति
दुर्भावना प्रकट नही होती

यदि हो भी जाऐ तो सफलता नही मिलती है ।




दूसरी तरफ हमारा मन भावनाओँ का सागर
होता है
जो जिसकी लहरेँ हमेँ डुबोने के लिए प्रयाप्त हैँ
परन्तु
जब हम अपने जीवन का समस्त दायित्व(ज्ञान
,बुद्धि ,कर्ता भाव) प्रभु जी को अपर्ण कर देतेँ
हैँ
तो प्रभु जी की अनन्य कृपा से हमारी मन की
गुलामी की बेड़ियाँ टूटने लगतीँ है
और हम अन्तरात्मा के निर्देशानुसार कर्म करने
लगतेँ है
ये तो जगजाहिर है कि अन्तरात्मा सदैव हमेँ
सत्य ,धर्म और उचित मार्ग दर्शन ही देती है ।
विशेष बात ये है कि अब तक बाँटे गये "समर्पण"
की प्रेरणाओँ के फलस्वरूप प्रभु जी के
"श्रद्धावान" मन के मत को त्याग अन्तरात्मा
की प्रेरणाओँ पर चलने लगतेँ हैँ
इसी कारण मैँ स्वयँ भी कभी-कभी इस सोच मेँ
पड़ जाता हूँ कि
कही ये अन्तरात्मा की आवाज ही परमात्मा
की आवाज तो नही है ?



_/\_
हे मेरे प्यारे भाइयोँ ,बहनोँ मेरे समस्त पोस्ट
,प्रेरणाऐँ केवल अनुभवोँ के आधार पर ही होते है
यदि मेरे अब तक के जीवन मेँ एक भी ऐसी घटना
होती जो मेरे चरित्र को कलँकित करती तो
निश्चय ही मानिए

आज मैँ सोशल मीडिया  पर ही ना होता ।


बचपन मेँ माँ के द्वारा कराये गये "जल के साथ समर्पण और युवा अवस्था मेँ हृदय की प्रेरणा से किये गये समर्पण ने मुझे सदैव सँभाल कर रखा

इन्सान को इन्सानियत से भटकाने वाली भावनाऐं मुझमेँ भी प्रयाप्त थी और परिस्थितियाँ भी पनपती रहीँ
परन्तु

ये भगवद कृपा ही थी जो उन विषैली ,वेगवान
स्थितियोँ-परिस्थितियोँ से जीवन मेँ अनेकोँ
बार घिरा होने के बाद भी स्वयँ के चरित्र को
सुरछित को सुरछित और बेदाग ही पाता हूँ ।


उन परिस्थितियोँ का अवलोकन करता हूँ तो
मुझे केवल भगवद कृपा ही दिखाई देती है ।

अतः मेरा सभी माताओँ ,बहनोँ और भाइयोँ से
एक ही अनुरोध है कि निश्छल ,निष्काम भाव से
प्रभु सम्मुख "समर्पण" करेँ 
और 
बच्चोँ से भी उसी
प्रकार करायेँ
जैँसे मेरी माता जी ने किसी महात्मा की
प्रेरणा से मुझसे कराया था -

"प्रातः स्नान के पश्चात एक लोटा जल लेकर
जगतपिता का स्मरण करते हुए किसी स्वच्छ
स्थान अथवा शिवलिँग पर जल चढ़ाते हुए
प्रार्थना करेँ कि -

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"हे जगतपिता" "हे जगदीश्वर" मै जैसा भी हूँ
खोटा या खरा अब स्वयँ को आपके श्री चरणोँ मेँ
अर्पण करता हूँ ।"
"हे नाथ" अपनी समस्त इच्छाऐँ कामनाऐँ आपके
श्री चरणोँ मेँ अर्पण करता हूँ
मेरे लिए क्या अच्छा ,क्या बुरा अब आपकी
जिम्मेदारी । अब मैँ आपका शरणागत हूँ
"दीनदयाल" ।"
छोटे बच्चोँ के लिए थोड़ा सहज होगा ये
प्रार्थना -

"हे भगवान इस जीवन नैइया की पतवार अब
आपको सौँपता हूँ इसे आप ही सम्भालिए ।"
हम बच्चोँ के भाग्य निर्माता तो नही हो सकते
परन्तु उन्हे प्रभु शरणागति की प्रेरणा देकर
उनके जीवन के दुर्भाग्य को टालने का माध्यम
अवश्य बन सकतेँ हैँ ।


कृपया शँका ना कीजिएगा कि ऐसा करने से बच्चे
साधु-सन्यासी हो जाऐँगे
क्योँ कि मैँ स्वयँ भी एक गृहस्थ हूँ


प्रभु जी भी अपने शरणागतोँ को तन से नही
बल्कि
मन से सन्यासी बना देते है
जिसके फलस्वरूप हम काम , क्रोध ,लोभ ,मोह
और अहँकार के चँगुल से सुरछित रहते हुए अपने
धर्मो(कर्तब्योँ) का भलीभाँति पालन कर पातेँ
हैँ ।


_/\_
प्रभु जी ने भागवद गीता के माध्यम से हमेँ जो
महान अवसर दिया है उसे ब्यर्थ ना गँवाऐँ -
"सर्वधर्मान परित्यजै ,
मामेकं शरणं ब्रिज ।
अहँत्वा सर्व पापेभ्योः ,
मोछश्चामि माशुचा ।


अतः अपने हृदय की समस्त शँकाओँ-कुशँकाओँ को
मिटा कर प्रभु शरण अपनाऐँ
और अपना जीवन शान्तिमय व सफल बनाऐँ।


_/\_
"प्रभु जी आपको अपना निर्मल आश्रय प्रदान
करेँ"


सभी प्यारे व आदरणीय भाइयोँ ,बहनोँ को
सादर सहृदय ,सप्रेम_/\_नमन ।
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।


2:23 AM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.26 और भावपूर्ण अनमोल प्रेरणाएं

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.26  और भावपूर्ण अनमोल प्रेरणाएं




"सफल शरणागति का रहस्य"

"पूर्ण समर्पण"


_/\_
भगवद कृपा से शान्ति ,मुक्ति ,भक्ति आपके जीवन मेँ सहज हो जाऐगी
यदि आपको प्रुभु सँरछण अर्थात "भगवद शरण" मिल जाऐ ।
"समर्पण" की सफलता का एक ही आधार है -"पूर्ण समर्पण" ।


तो आइये जानेँ पूर्ण समर्पण क्या है ? 

"पूर्ण समर्पण" ना तो घर-द्वार छोड़ सन्यास को कहतेँ है
और ना ही अपनी जिम्मेदारियोँ(कर्तब्योँ) का त्याग पूजन आदि लगने को कहते हैँ ।


"पूर्ण समर्पण" है परमात्मा मेँ पूर्ण विश्वास भाव से अपने जीवन का समस्त भार(दायित्व) परमात्मा को सौँप देना 
परन्तु
एक अज्ञानी अबोध बालक की भाँति ।

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अज्ञानी अबोध बालक का तात्पर्य है कि -

 "हमारे भीतर तनिक भी अपने ज्ञान के प्रति श्रेष्ठता का भाव(अहँकार) ना हो कि श्री राम ही सत्य,
श्री कृष्ण ही सत्य,
श्री शिव ही सत्य,
अल्लाह सत्य ,साँई सत्य , कबीर सत्य ,ईशा सत्य आदि आदि
इस प्रकार की सत्यता का भाव भी अहँकार का ही प्रतीक होता है
जब कि
समर्पण मेँ इन्ही श्रेष्ठता के भावोँ का ही बलिदान चढ़ाना होगा ।



_/\_
*इस कथन पर सँदेह ना कीजिएगा क्योँ कि भविष्य मेँ सत्य स्वयँ सिद्ध हो जाऐगा और आपका भगवद प्रेम भी अगाध हो जाऐगा*

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उदाहरण स्वरूप जब मैने भगवद सत्ता के सम्मुख समर्पण किया तो उस समय प्रभु श्री राम ,प्रभु श्री कृष्ण और माँ जगदम्बा से अनन्य प्रेम था परन्तु
मैने अपने बुद्धि और ज्ञान के श्रेष्ठता के भावोँ को तूल देने के बजाय
एक पूर्ण अज्ञानी की भाँति अल्लाह को भी पुकारा और भगवान को भी वो कुछ इस प्रकार थी -


_/\_
"हे जगदीश्वर" ,"हे समस्त सृष्टि के आधार" कोई आपको अल्लाह पुकारता है तो कोई ईश्वर , आप हमारी ज्ञान ,बुद्धि और तर्क से परे हैँ
अतः आप जो भी हैँ ,जैसे भी है इस जीवन नैइया की पतवार अब आपको सौँपता हूँ इसे आप ही सम्भालिए ।



"पूर्ण समर्पण" का दूसरा आधार है -"अपनी समस्त इच्छाऐँ-कामनाऐँ परमात्मा को अपर्ण कर देना है


अर्थात
अपना बर्तमान और भविष्य जगत प्रभु जी की इच्छा पर छोड़ कर कर्म करना है ।"

ऐसा तभी सम्भव है जब हमारे ज्ञान और बुद्धि मेँ ये भाव हो कि - जगदीश्वर ही इस जगत मेँ "सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता और दाता हैँ
 "हम अपने अल्प ज्ञान और अल्प बुद्धि से जिस विषय और वस्तु को मायावश सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि मानतेँ हैँ
कदाचित सम्भव है कि वो ज्ञान सागर परमात्मा की दृष्टि मेँ तुच्छ ,सारहीन और अमँगलकारी हो ।

क्योँ कि
हमारे लिए क्या आवश्यक है और क्या अनावश्यक इसका प्रभु जी को भली भाँति ज्ञान होता है ।



पूर्ण समर्पण और सफलता का तीसरा आधार है -

"समर्पण का सँकल्प"


हम सभी ने पौराणिक कथाओँ मे देखा-सुना ही होगा कि जब कोई विशेष निर्णय लिया जाता है तो हाथोँ मेँ जल लेकर अपने वचन ,निर्णय ,दान अथवा श्राप देते हुए धरती पर गिराया जाता है यही क्रिया सँकल्प होती है ।

उदाहरण स्वरूप जब तक प्रह्लाद पौत्र राजा बलि ने हाथोँ मेँ जल लेकर तीन पग धरती दान करने का सँकल्प नही कर लिया
तब तक वामन रूप प्रभु जी ने अपना पग नही बढ़ाया 
परन्तु
राजा बलि के सँकल्पबद्ध होते ही दो पग मे सारी धरती नाप ली
क्योँ कि 
अब राजा बलि भी सँकल्पबद्धता के कारण अपने वचन से मुकरने का अधिकार खो बैठे थे । 

 
मैँ प्रायः अपने सफल शरणागति के सम्बन्ध मेँ जब डूब कर इसका अध्ययन करता हूँ कि -

 "आखिर बचपन मेँ महात्मा ने माँ को एक लोटा जल गिराते हुए समर्पण के प्रार्थना करने और कराने की प्रेरणा क्योँ दी ? 
तो
अन्तरात्मा एक ही निष्कर्ष निकालती है कि -
"हमारे समर्पण की सफलता के लिए हम सभी मेँ प्रायः वो भाव नही होते जिसका होना आवश्यक है ।

इसी कारण ही उस महान सन्त आत्मा ने हमेँ समर्पण के साथ-साथ जल अर्पण कर सँकल्प लेने की प्रेरणा दी ।
ये सँकल्प मात्र एक बार ही करना प्रयाप्त है
परन्तु
भगवद विषय है अतः अपनी सुविधा और इच्छानुसार प्रतिदिन करेँ तो भी कोई हर्ज नही ।

_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ मेरे जीवन का मुख्य लछ्य ही यही है कि 
आपके जीवन मेँ भगवद कृपा का आधार हो ,
आपके जीवन मेँ शान्ति ,मुक्ति ,भक्ति ,प्रेम और आनन्द का सँचार हो ।
क्योँ कि
 इसी सेवा को ही प्रभु जी ने सर्वोपरि जताया और जनसेवार्थ सँकल्पबद्ध भी कराया है ।

 अतः समर्पण की प्रेरणा सहित अपने इस सेवक का _/\_प्रणाम स्वीकार करेँ ।शांति की 100% गारंटी ,प्रेम, आनन्द, मोछ और अनन्त फल प्रदायिनी ईश्वरीय अनुभव, अनमोल भावपूर्ण प्रेरणाएं "मैं कोई धर्म प्रचारक नहीं जनसेवार्थ ही प्रेरणाएं बांट रहा हूं आपका एक हृदयगत समर्पण बदल देगी आपके जीवन की दशा और दिशा।"

_/\_प्रभु जी हम सभी को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करेँ ।

।।जय जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।

. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . 




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                     "अनमोल भगवद प्रसाद"

"हमारे व अपनोँ के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण ,सद्गुण प्रदायिनी ,भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"

"(जिसे स्वयँ के साथ बच्चोँ से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ)" -

1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।"

2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"

शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ परमात्मा के श्री चरणोँ मे विलीन कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर जगदीश्वर को सौँप देना

प्रभु रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी

कृपया इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही बाँट रहा हूँ ।

जिसकी सफलता आपके विश्वास पर निर्भर है ।



Monday, April 6, 2020

3:07 AM

🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित , पूर्ण विश्वसनीयता के लिए अद्भुत ज्ञान का समागम।

शांति ,प्रेम ,आनंद और अनंत भगवत कृपा प्रदायिनी अनमोल प्रेरणाएं


सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए 
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।


क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं

भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।



"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -







1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।




2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"




3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


शरणागति, समर्पण, surrender of god, peace of mind

यदि आप परमात्मा से गुरु का नाता जोड़ना चाहते हैं तो

4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आज से आप मेरे भी गुरु हैं 
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।



प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है 
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए

जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।


आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा 
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।


प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।


☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि 
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध 
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

_/\_
।।जय श्री हरि।।

Sunday, April 5, 2020

10:04 PM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.25

श्री भागवत गीता भाग.25

https://prabhusharana.blogspot.com/?m=0





🙏 आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। शांति ,मुक्ति, भक्ति और प्रभु जी की अनन्य कृपाऐं 100% निश्चित।
भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।

मुझे अच्छी तरह याद है
जब मैंने पहली बार श्री कृष्णा के भागवत गीता पार्ट का आखिरी भाग देखकर फूट-फूटकर रो पड़ा था

इसमें भगवान श्री कृष्ण स्वरूप में
भगवत कृपा प्राप्ति का सरलतम उपाय
 *समर्पण* को ही सहज और सुलभ मार्ग बता रहे थे।

अब क्योंकि श्री भगवान के अनमोल कृपाओं और कारण को अपने निजी जीवन में अनुभव कर चुका था।

इसलिए मैं यह सोचकर बहुत ज्यादा हैरान भी था कि-:
"मात्र एक समर्पण से भगवत कृपा इतनी सहजता और सरलता से मिल जाती है फिर भी इंसान क्यों भटकते रहते हैं ?"


मेरे प्यारे भाइयों बहनों अपने मन के इस सवाल का उत्तर तो उस समय नहीं समझ पाया था

परंतु धीरे-धीरे जीवन के अन्य अनुभव के द्वारा जो ज्ञान श्री भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ

वह यही है कि हम सभी अहंकार रूपी माया के अधीन होते हैं
हमारे भीतर परमात्मा के प्रति पूर्ण श्रद्धा ,विश्वास और हमारे मन में सरलता का अभाव होता है ।


माया का प्रभाव ऐसा होता है कि यदि आपके सम्मुख भगवान भी आकर आप को समझाएं फिर भी आपके हृदय में वह बातें नहीं बैठेंगे जो आपके जीवन को बदल सकती हैं।

उदाहरण स्वरूप आप नीचे दिए गए अनमोल प्रेरणा को ही ले लीजिएगा

जिसे मैं केवल जन सेवार्थ भगवत प्रसाद मानकर बांट रहा हूं
 परंतु
हमारे कई समझदार भाई बहन इसे धार्मिक प्रचार अथवा माया जनित मानसिकता समझकर नजरअंदाज कर देंगे।

हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण केवल 2 मिनट का होता है परंतु तर्क कुतर्क में ऐसे लोग घंटों गवा देंगे।


मेरा विश्वास कीजिए मैं जनसेवार्थ संकल्पबद्ध हूं
 इसी कारण ही फेसबुक सोशल मीडिया आदि के माध्यम से केवल समर्पण भाव ही बांटने का प्रयास करता रहता हूं


समर्पण मैंने सभी धर्म वर्ग के लोगों पर प्रभावशील होते हुए देखा है

आप भी आजमा कर एक बार अवश्य देखिएगा

तर्क-कुतर्क तो अपने ज्ञान की श्रेष्ठता अर्थात अहंकार का लक्षण होता है इसलिए सावधान रहिएगा।

                           🙏
धर्म का प्रचार नहीं यह आपके सेवार्थ है

                   *भगवत प्रसाद*
                      _________

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


शंका ना करना
  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।

क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -



1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।



प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
https://prabhusharana.blogspot.com/?m=0
Surrender of God

समर्पण में परमात्मा के प्रति केवल भाव से स्वयं को अर्पण ही करना होता है
शेष कार्य प्रभु जी स्वयं कर और करा देते हैं।



_/\_
।।जय श्री हरि।।

Monday, March 30, 2020

1:28 AM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.24

श्री भागवत गीता

भाग.24



                             
🙏🏻 परमात्मा से प्रार्थना इतने गहरे भाव से करें कि आँसू आ जाएँ, किसी प्रकार की कोई आकांक्षा या मांग न रखें, क्योंकि परमात्मा से मांगना नहीं पड़ता, उनकी शरण में जाने से ही सब मिल जाता है। वास्तव में प्रार्थना में बहुत शक्ति होती है, चाहे वो एक घंटे की हो या एक मिनट की .....यदि सच्चे मन से की जाये तो ईश्वर अवश्य सहायता करते हैं...."अक्सर लोगों के पास ये बहाना होता है की हमारे पास वक्त नहीं".......मगर सच तो ये है कि ईश्वर को याद करने का कोई समय नहीं होता प्रार्थना के द्वारा मन के विकार दूर होते हैं, एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का बल मिलता है ||
   
प्रार्थना करते समय मन को ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध व घृणा जैसे विकारों से मुक्त रखें. प्रातः काल दैनिक प्रार्थना को जीवन का एक अनिवार्य अंग अवश्य बनाना चाहिए.....इससे न केवल शक्ति मिलेगी बल्कि बुराई या अकर्म के प्रति आसक्ति भी कम होगी..         
 🙏हे कान्हा, पग पग है तेरा आसरा, हर पग पर है तेरा साथ
❤ पग पग पे है तू रक्षा करता, पकड के मेरा हाथ❤
🙏 हरि हरि बोल 🙏 श्री कृष्ण: शरणम् मम: 🙏

कृष्ण भक्ति ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया...
मेरी मायूस और ख़ामोश दुनिया को हंसा दिया।
कर्ज़दार हूं हे नाथ ! मैं अपने "कृष्ण" का जिसने
मुझे आप जैसे परम "कृष्ण" भक्तो" से मिला दिया.....।।
❤ श्री राधे राधे🌺 जय श्री राधेश्याम ❤

Friday, March 27, 2020

11:07 PM

पूर्ण समर्पण ,भाग.3

पूर्ण समर्पण

भाग. 3


_/\_
अपने अर्जित समस्त ज्ञान ,बल और बुद्धि को
ही सर्वश्रेष्ठ मानना हमारा अहँकार होता है

वास्तव मेँ
इस समस्त ब्रम्हाण्ड को रचने वाले सर्वब्यापी
परमात्मा की बुद्धि , शक्ति और सामर्थ्य
हमारी कल्पनाओँ से भी परे है
जिनके सम्मुख हमारी बुद्धि ,
हमारा ज्ञान, हमारा सामर्थ्य धूलि के शूछ्म
कण के समान भी नही है।
जब हमारी बुद्धि और ज्ञान मेँ ये बात
भलीभाँति बैठ जाऐ
तो
समझिए हमारा हृदय "पूर्ण समर्पण" के योग्य
हो गया है।



_/\_
"प्रभु शरणागति अर्थात समर्पण का अर्थ है -
अपने समस्त ज्ञान ,बुद्धि ,सामर्थ्य और उससे
जुड़ी समस्त कामनाओँ को परमात्मा के श्री
चरणोँ मेँ अर्पण कर देना"
परन्तु
एसा होता नही है
क्योँ कि
यदि हम समर्पण की प्रार्थना करतेँ भी है
तो
मायावश उसमेँ अपनी "कामना" रूपी बुद्धि का
अहँकार भी जोड़ देतेँ है।

जैसे कि - प्रभु कृपा से हमारी दुखद
परिस्थितियाँ बदल जाऐगी,

धन,बल अथवा सिद्धियाँ मिल जाऐँगी।

मुझे लोग सिद्ध महात्मा के रूप मेँ जानने लगेँ
,मेरा मान-सम्मान करेँ।

मुझे अथाह सिद्धियाँ प्राप्त हो जाऐगी आदि-
इत्यादि।

इसलिए हमेँ इस परम सत्य पर भी ध्यान देना
होगा कि -

*हमारी बुद्धि और ज्ञान पर माया का आवरण
चढ़ा हुआ है जिसके कारण हम उचित-अनुचित
,आवश्यक-अनावश्यक का भेद समझने मेँ पूर्णतया
अछम है।*

*माया से प्रभावित बुद्धि से हम वही कामना
करतेँ है जो हमेँ सर्वश्रेष्ठ लगता है
परन्तु
हमारे लिए क्या श्रेष्ठ और आवश्यक है ये प्रभु
जी से बेहतर भला और कौन जान सकता है।*


_/\_
"पूर्ण समर्पण" कोई यम-नियम युक्त पूजा-
साधना नही
बल्कि
परमात्मा के प्रति हृदयगत प्रेम,श्रद्धा और
पूर्ण विश्वास भाव है।


_/\_
मेरे प्यारे भाइयो बहनो
ये मेरे पूर्ण समर्पण का ही परिणाम था जो
प्रभु जी ने अपनी अनन्य कृपाओँ से "जन-सेवा"
हेतु मेरे जीवन को समर्पण की प्रेरणाओँ से भर
दिया।


_/\_
"पूर्ण समर्पण" के उदाहरण स्वरूप जब मेरा मन
सँगीता से विवाह की कामना लिए अत्यन्त
ब्याकुल और अधीर हो गया

तो सोचा - "चलो जगदीश्वर से ही माँग लूँ"
परन्तु
मन्दिर पहुँचते ही बचपन मेँ किसी महात्मा के
सत्सँग की प्रेरणा से माँ के द्वारा कराया गया
वो समर्पण याद आ गया


जिसे पुनः दोहरा दिया - "हे भगवान अब इस
जीवन नैइया की पतवार आपको सौँपता हूँ इसे
अब आप ही सँभालिए।"


जब विवाह की कामना प्रकट करने का समय
आया तो

सँगीता के सुखी जीवन हेतु मेरे हृदय मेँ त्याग की
भावना प्रकट हो गई।

अब मुझे मेरा जीवन लछ्य रहित विहीन दिखाई
देने लगा

क्योँ कि सँगीता के अतिरिक्त किसी और से
विवाह ना करने का सँकल्प वषोँ पहले ही ले
चुका था।


अब सोचा - क्योँ ना प्रभु जी से माँग लूँ कि -
"मेरी जिन्दगी दूसरोँ की सेवा मेँ बीत जाऐ"

परन्तु

अन्तरात्मा ने सलाह दी कि - "शिवप्रसाद"
"तुम तन ,मन और धन से दूसरोँ की सेवा को ही
सर्वोपरि मानते हो
परन्तु हो सकता है इससे भी बढ़ कर जीवन का
कोई सेवा मार्ग हो"


अब क्योँ कि मुझे प्रभु जी की शक्ति-सामर्थ्य
और ज्ञान पर अटूट विश्वास था
अतः मैने "जगदीश्वर" को ही अपना "गुरू" भी
मानते हुए "जीवन के सर्वश्रेष्ठ सेवार्थ मार्ग"
पर चलाने की प्रार्थना कर के मन्दिर से लौट
आया।


प्रभु दीनदयालु ने अपनी अनुपम लीलाओँ के
माध्यम से
"शरणागति भाव" भाव बाँटने की ना केवल
प्रेरणाऐँ दी

बल्कि मैँ ऐसा करते हुए कर्ताभाव के अहँकार मेँ
ना डूब जाऊँ
इसके लिए "जगदगुरू" जी ने मुझसे मेरा
"मैँ"(अहँकार) छीनते हुए
मुझे "निःस्वार्थ सेवा भाव से जीने का सँकल्प
भी करा लिया।"


_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ मेरे इसी "पूर्ण
समर्पण" के फलस्वरूप ही
प्रभु जी ने अपनी "शरणागत वत्सलता" का
परिचय देते हुए
मुझे सँसार मे ब्याप्त माया का दर्शन कराते हुए
मानवीय विवश्ताओँ का दर्शन कराया।

जिसके फलस्वरूप ही मेरे हृदय मेँ सबके प्रति
निर्मल(स्वार्थरहित) प्रेम , दया और
छमाशीलता की भावना जागृति हुई।
प्रभु जी ने अपनी सर्वब्यापकता का भी दर्शन
कराया।

निराकार और साकार का भेद मिटाया।
निराकार प्रभु जी को साकार रूप मेँ देखने की
कामना प्रबल हुई तो

प्रभु जी ने स्वप्न मेँ अपने गगन समान नीलवर्ण
चतुर्भुज रूप का भी स्वप्न मेँ दर्शन कराया।

सुख-दुख आदि माया से मुक्त कर शाश्वत शान्ति
प्रदान किया

जिसके परिणाम स्वरूप मुझे अपने कठिनतम धर्मोँ
(कर्तब्योँ) मेँ कोई दुर्गम बाधा भी विचलित
नही कर पाती है।

जिस समय मैँ स्वयँ को जानने-पहचानने के लिए
ब्याकुल था

प्रभु जी ने अपने अनमोल वचनोँ "श्री भागवत
गीता" से रूबरू कराया

जिसके पश्चात ही मै स्वयँ को और प्रभु लीलाओँ
तथा भगवद स्वरूपोँ को समझ पाया।

प्रभु जी ने अपनी समस्त लीलाओँ कृपाओँ से यही
दर्शाया कि - "इस भौतिक नाश्वान जगत मेँ
तन ,मन और धन के द्वारा की गई सेवा से कहीँ
अधिक श्रेष्ठ है

निष्काम भाव से "समर्पण" की प्रेरणा का
दान करना।

क्योँ कि

प्रभु जी के प्रति "पूर्ण समर्पण" भाव ही हमे
हमारे जीवन के "मूल धन" शान्ति ,मोछ और
भक्ति को सहज-शुलभ कर सकता है।


_/\_
मेरे प्यारे प्रभु भक्तो
प्रभु जी की लीलाओँ-कृपाओँ का कितना भी
वर्णन करूँ कम है

मैँ जिस देवी सँगीता से विवाह की कामना लिए
मन्दिर गया था परन्तु जिसे माँग न सका था
जो मुझसे कहीँ अधिक सुन्दर ,सुशील , धर्मशील
और मेरे लिए वरदान तुल्य थी

उस सँगीता से विवाह के रिश्ते को "जन-सेवार्थ
सँकल्प" के कारण ठुकराने के पश्चात भी
प्रभु जी ने मेरा विवाह सँगीता से ही कराया।



साँसारिक दुखःद-विषम परिस्थितियाँ मुझे
वर्षोँ से रूला नही पाईँ
परन्तु
भगवद प्रेम-आनन्द से रोना शायद ही कोई
दिन खाली जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण सत्य ये है कि प्रभु जी
सर्वब्यापी ,घट-घट वासी ,असीम समर्थवान हैँ
परन्तु
हम अपने ज्ञान के अहँकार वश इन्हे सीमित समझ
लेतेँ है।


_/\_
प्रिय भक्तोँ अब आप स्वयँ ही विचार कीजिए -
"यदि मैँ अपनी माया से पोषित बुद्धि से केवल
सँगीता का हाथ माँग लेता
तो
क्या प्रभु कृपाओँ का पात्र बन पाता?
_/\_
सहृदय प्रणाम मेरे प्यारे दोस्तों।

"प्रभु जी आप सभी को अपना निर्मल आश्रय प्रदान करें"

।जय जय श्री राधेकृष्णा।






🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏




                  🙏 भगवत प्रसाद🙏

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"

शंका ना करना दोस्तों
 ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।



क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

Wednesday, March 25, 2020

7:57 AM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.23

भागवत गीता 
भाग .23



🙏
मेरे प्यारे दोस्तों कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं है अभी भी वक्त है 

आज ही एक अंजलि जल लेकर समर्पण का संकल्प कर ले,

क्यों कि

हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है

उसमें होनी और अनहोनी दोनों ही शामिल होता है


 *होनी*--वह होती है जो हमारे पूर्वजन्मो के कर्मों के फल स्वरुप पहले ही निर्धारित होती हैं।

और

*अनहोनी*-- वह होती है जो अकस्मात घटित होती है



इसी सत्य का अनुभव करते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भी कहा है---



"तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए,

 अनहोनी ना होय कभी होनी हो सो होय।



🙏

हे मेरे प्यारे दोस्तों इस इस समय मेरी स्वयं की आंखें भी लिखते हुए प्रभु जी की उन लीलाओं-कृपाओं का का स्मरण आते ही भगवत प्रेम से भाव विभोर होकर नम हो गई।



क्योंकि अब तक के जीवन में मेरे प्रभु जी ने मुझे उसी प्रकार संभाला और संवारा जैसे एक माता अपने शिशु को संभालती, संवारती, और सुरछा करती है।



मेरा विश्वास कीजिए मैं पिछले 20 वर्षों से इसी विषय पर ही शोध करता रहा हूं



चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा किसी अन्य पंथ का हो सब पर यह समर्पण भाव प्रभावी होते देखा हैं
 बशर्ते---


"हमारे समर्पण की प्रार्थना का भाव निष्पक्ष हो"



🙏
जय जय श्री राधेकृष्णा मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ ।

"प्रभु शरण परम हितकारी"


"हे प्रभु" आपकी इस माया सँसार मेँ मेरा मन सदैव विषय-विकारोँ मेँ ही डूबा रहता है 
 दुर्भावनाओँ की प्रबलता सदैव पापाचरण को विवश करतीँ है  
अतः "हे दीनदयालु ","हे जगतश्रेष्ठ" मैँ अपना सबकुछ हार कर आपकी शरण आया हूँ नाथ ।
 मुझ अधर्मी ,पाप के भागी को अब आपका ही आसरा है 

"हे कृपासिन्धु" मेरे इस तुच्छ समर्पण को स्वीकार कर अपनी माया से अभयता दीजिए ।

"दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ ।"

_/\_
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ,
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
पन्थ मतो की सुन-सुन बातेँ ,
 द्वार तेरे तक पहुँच ना पातेँ ।
भटके बीच जहाँन तुम्हरी शरण पड़े ।
तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी ,
राम तू ही गणपति त्रिपुरारी ।
तुम ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ।
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।


"प्रभु शरण अपनाऐँ ,
प्रेम,शान्ति,मुक्ति सहज पाऐँ ।"

🙏

सभी भाई बहनों से रिक्वेस्ट है कि पोस्ट को शेयर और कमेंट अवश्य करें

जिससे हमें इस ज्ञान यज्ञ में अधिक से अधिक योगदान देने की प्रेरणा मिलेगी।

🙏
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।



Sunday, March 22, 2020

8:25 PM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.22

भागवत गीता

भाग.22


मेरे प्यारे दोस्तों कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं है अभी भी वक्त है

आज ही एक अंजलि जल लेकर समर्पण का संकल्प कर ले,

क्यों कि





हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है

उसमें होनी और अनहोनी दोनों ही शामिल होता है



 *होनी*--वह होती है जो हमारे पूर्वजन्मो के कर्मों के फल स्वरुप पहले ही निर्धारित होती हैं।

और

*अनहोनी*-- वह होती है जो अकस्मात घटित होती है



इसी सत्य का अनुभव करते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भी कहा है---



"तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए,

 अनहोनी ना होय कभी होनी हो सो होय।



🙏

हे मेरे प्यारे दोस्तों इस इस समय मेरी स्वयं की आंखें भी लिखते हुए प्रभु जी की उन लीलाओं-कृपाओं का का स्मरण आते ही भगवत प्रेम से भाव विभोर होकर नम हो गई।



क्योंकि अब तक के जीवन में मेरे प्रभु जी ने मुझे उसी प्रकार संभाला और संवारा जैसे एक माता अपने शिशु को संभालती, संवारती, और सुरछा करती है।



मेरा विश्वास कीजिए मैं पिछले 20 वर्षों से इसी विषय पर ही शोध करता रहा हूं



चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा किसी अन्य पंथ का हो सब पर यह समर्पण भाव प्रभावी होता हैं बशर्ते---

"हमारे समर्पण का भाव पूरी तरह निष्पक्ष हो"





_/\_
जय जय श्री राधेकृष्णा मेरे प्यारे भाइयोँ बहनोँ ।

"प्रभु शरण परम हितकारी"

"हे प्रभु" आपकी इस माया सँसार मेँ मेरा मन सदैव विषय-विकारोँ मेँ ही डूबा रहता है
 दुर्भावनाओँ की प्रबलता सदैव पापाचरण को विवश करतीँ है 
अतः "हे दीनदयालु ","हे जगतश्रेष्ठ" मैँ अपना सबकुछ हार कर आपकी शरण आया हूँ नाथ ।
 मुझ अधर्मी ,पाप के भागी को अब आपका ही आसरा है

"हे कृपासिन्धु" मेरे इस तुच्छ समर्पण को स्वीकार कर अपनी माया से अभयता दीजिए ।

"दीनबन्धु दीनानाथ मेरी डोरी तेरे हाथ ।"

_/\_
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ,
भव पार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।
पन्थ मतो की सुन-सुन बातेँ ,
 द्वार तेरे तक पहुँच ना पातेँ ।
भटके बीच जहाँन तुम्हरी शरण पड़े ।
तू ही श्यामल कृष्ण मुरारी ,
राम तू ही गणपति त्रिपुरारी ।
तुम ही बने हनुमान तुम्हरी शरण पड़े ।
उद्धार करो भगवान तुम्हरी शरण पड़े ।


"प्रभु शरण अपनाऐँ ,
प्रेम,शान्ति,मुक्ति सहज पाऐँ ।"

_/\_
।।जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की।।



5:57 AM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.21

भागवत गीता
भाग.21
मेरे प्यारे दोस्तों कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं है अभी भी वक्त है
आज ही एक अंजलि जल लेकर समर्पण का संकल्प कर ले,
क्यों कि

हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है
उसमें होनी और अनहोनी दोनों ही शामिल होता है

 *होनी*--वह होती है जो हमारे पूर्वजन्मो के कर्मों के फल स्वरुप पहले ही निर्धारित होती हैं।
और
*अनहोनी*-- वह होती है जो अकस्मात घटित होती है

इसी सत्य का अनुभव करते हुए गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने भी कहा है---

"तुलसी भरोसे राम के निर्भय होकर सोए,
 अनहोनी ना होय कभी होनी हो सो होय।

🙏
हे मेरे प्यारे दोस्तों इस इस समय मेरी स्वयं की आंखें भी लिखते हुए प्रभु जी की उन लीलाओं-कृपाओं का का स्मरण आते ही भगवत प्रेम से भाव विभोर होकर नम हो गई।

क्योंकि अब तक के जीवन में मेरे प्रभु जी ने मुझे उसी प्रकार संभाला और संवारा जैसे एक माता अपने शिशु को संभालती, संवारती, और सुरछा करती है।

मेरा विश्वास कीजिए मैं पिछले 20 वर्षों से इसी विषय पर ही शोध करता रहा हूं

चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो अथवा किसी अन्य पंथ का हो सब पर यह समर्पण भाव प्रभावी होता हैं बशर्ते---
"हमारे समर्पण का भाव पूरी तरह निष्पक्ष हो"





🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏









सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -

1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।


2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"

3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।

4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।

प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

Friday, March 20, 2020

7:31 PM

परब्रम्ह प्रभु जी के अनमोल वचन(श्री भागवत गीता) भाग.20

भागवत गीता
भाग.20

मन की शान्ति पाने का सबसे सरलतम उपाय

 🙏

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -

1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।


2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"

3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।

4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।

प्यारे दोस्तों शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।

आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।

प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।

कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

Thursday, March 19, 2020

7:30 PM

पूर्ण समर्पण भाग.2

ॐ।श्री कृष्णा शरणं ममः।ॐ
"पूर्ण समर्पण" और "निष्काम भक्ति"
भाग.2

_/\_
एक बार एक पण्डित जी बुलावे पर मेरे घर मेरे
बड़े भैया जी को देखने आए ।

भैया जी को ऊपरी चक्कर की समस्या थी
मानसिक स्थिति असन्तुलित होने के कारण घर
के हालात ठीक नही थी ।

पण्डित जी पड़ोस मेँ रहते थे जो कि निःशुल्क
झाड़फूक करते थे

इस कारण मेरा हृदय उनसे प्रभावित था
मुझमेँ एक बुरी आदत है कि जब मैँ किसी विशिष्ट
ब्यक्ति से मिलता हूँ
तो
उन्हे प्रभु प्रसाद रूपी अनुभवोँ के माध्यम से
"प्रभु शरणागति" भाव अपनाने और अन्य लोगोँ
मेँ बाँटने के लिए प्रेरित करता हूँ


अपनी इस क्रिया को मैँ अपने जीवन का मूल
धर्म अर्थात कर्तब्य मानता हूँ ।
क्योँ कि
अब तक के मेरे समस्त प्रभु प्रदत्त अनुभव इसी
कर्म को जीवन का सर्वश्रेष्ठ कर्म सिद्ध करतेँ
हैँ ।


जब पण्डित जी अपनी क्रिया सम्पादित कर
चाय पी रहे थे
तब मैने उनकी अनुमति ले कर प्रभु शरणागति
भावना की विशिष्टता पर बात शुरु की ।

परन्तु मेरी प्रेरणाओँ का पण्डित जी पर
विरीत प्रभाव पड़ा ।

अचानक बोल उठे - "तुम्हे अपने ज्ञान का
अहँकार है"

ये सुन कर मैँ अन्दर तक काँप गया और अपने मन
को टटोलने लगा
परन्तु ऐसा कोई अहँकारी तत्व नही मिला
ये बोध जरूर हुआ कि मैने बात की शुरूआत ही
गलत की थी ।

इतने मेँ पण्डित जी फिर बोले - "मैँ देख रहा हूँ
तेरे ऊपर बहुत दुख हैँ । तू इनकी (श्री भगवान
की फोटो दिखाते हुए) पूजा करता है तू इनसे
माँग ।"

मैने बड़ी विनम्रता से उत्तर दिया - "जब
इनकी कृपा-करूणा से सुख और दुख की मनोवृत्ति
से ही निजात मिल गई है
तो फिर इन दुःखद परिस्थितियोँ से कैसा भय
और किस लिए माँगूँ ।

इतना कहते-कहते मैँ प्रभु प्रेम मे भावुक हो उठा
था
क्योँ कि उनकी लीलाऐँ-कृपाऐँ मानसिक पटल
पर तैरने लगीँ थी ।


अब पण्डित जी अपनी बात पर जोर देते हुए
फिर बोले - "अरे तू इनकी पूजा करता है ,माँगने
का अधिकार है तुझे , तू माँग इनसे ।"


पण्डित जी की बात सुनते ही मेरी भावना का
बाँध टूट पड़ा ,मेरी आँखेँ सजल हो उठी ।
भावुक कण्ठ से मैने कहा - "प्रभु प्रेम मे थोड़ा
सा जल और धूपबत्ती क्या चढ़ा देता हूँ तो क्या
अब अपने प्रेम की कीमत माँगूँ ।"

"नही पण्डित जी मेरे प्राण भी चले जाऐँगे तो
भी ये सम्भव नही है ।"
और

अचानक मैँ अपनी जगह से उठा और पण्डित जी
का पैर पकड़ते हुए कहा - "मान लीजिए आप मेरे
पिता हैँ और दैवीय गुणोँ से सम्पन्न मन की बात
भी जानने वाले है । मेरे लिए क्या अच्छा और
क्या बुरा इसकी पहचान आपको भलीभाँति है
और मैँ अज्ञानी आपसे पैर पकड़ कर कहूँ कि "हे
पिता जी" मेरे जीवन का समस्त भार आपकी
इच्छा पर निर्भर है
आप मुझे जिसके योग्य समझेँ वही प्रदान करेँ ।
तो
ऐसे मेँ आप क्या करेँगे ??
और
ऐसे मेँ यदि आपके द्वारा प्रदान किए गये
अवस्थाओँ ,ब्यवस्थाओँ के प्रति असन्तुष्ट हो मैँ
अपने मतानुसार आपसे माँग करू तो मेरा आपके
प्रति पूर्ण विश्वास और समर्पण कहाँ रहा ।

इसी प्रकार जब मैने सर्वब्यापी ,जगतश्रेष्ठ
,समस्त सृष्टि आधार को ही अपने जीवन का
समस्त भार सौँप दिया है
तो
फिर मुझे अपने मानसिकता के अनुरूप माँगने का
अधिकार ही कहाँ रहा ।
और
यदि माँगता हूँ तो अपने "प्रभु की प्रभुता" पर
विश्वास ही कहाँ रहा ।
जब कि प्रभु जी पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से
ही प्राप्य हैँ ।


जाते-जाते पण्डित जी कहने लगे - "मेरी बातोँ
को समझो ये मैँ नही कह रहा हूँ " मैँ तुम्हे एक
सप्ताह का समय दे रहा हूँ ,मेरी बात समझ आऐ
तो मेरे पास आ जाना।"
मैँ समझ गया था पण्डित जी का इशारा अपने
ऊपर सिद्ध किये गये देवता की ओर है ।

परन्तु

मैँ करता भी क्या प्रभु जी के द्वारा बनाया
गया ये घड़ा शायद बहुत ठोस था जो मृत्युसम
परिस्थितियोँ को सहजता से सहन कर गया ।



_/\_
मेरे प्यारे भाइयोँ ,बहनोँ  "पूर्ण समर्पण" अपने प्रभु की प्रभुता पर "पूर्ण विश्वास" और "निःस्वार्थ प्रेम" का प्रतीक होता है ।

जिस भक्त मेँ ये दोनोँ भाव हो तो प्रभु जी
अपने ऐसे भक्त का कल्याण कर परम शान्ति और
मोछ प्रदान करतेँ हैँ ।

क्योंकि ऐसे भक्तों को अपने प्रभु की न्याय प्रणाली पर पूर्ण विश्वास होता है।


जब किसी भक्त पर प्रभु जी की विशेष कृपा
होती है तो
प्रभु जी उसे अपनी शान्ति और मोछप्रदायिनी
निष्काम भक्ति और निष्काम कर्म की भावना
प्रदान कर देतेँ है

जिसके फलस्वरूप ऐसा भक्त अपने प्रारब्ध
(भाग्य) को शान्ति पूर्वक भोगते हुए नवीनतम
प्रारब्ध चक्र से मुक्त रहता है ।
और जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति पाता है ।



_/\_
हे मेरे प्यारे दोस्तों
 मेरे समस्त प्रेरणात्मक पोस्ट उस
निश्छल भाव से किये गये "समर्पण" और "जीवन
के सर्वश्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की प्रार्थना"
के फलस्वरूप ही है ।

मान ,सम्मान अथवा लाइक की तृष्णा से रहित
केवल आपके जीवन को शान्तिमयी और सार्थक
करने हेतु ही नौकरी से बचा समय सोशल मीडिया पर
देता हूँ।


यदि आपका हृदय एक बार भी पूर्ण विश्वास और
श्रद्धा से भाव-विभोर हो पुकार उठे - "हे
दीनदयाल" "हे समस्त सृष्टि के स्वामी" "हे
जगतपिता" मुझ मूर्ख ,अज्ञानी ,पाप के भागी
को भी अपनी शरणागति दीजै ।
तो
यकीन मानिए प्रभु जी ने अपनी "भगवद
वाणी" मेँ जो विशेष सँदेश दिया है

वो केवल सँदेश नही एक महान कृपा रूपी अवसर
है शान्ति और मोछ प्राप्ति का -
Bhagwat-gita-peace-of-Mind


"सर्वधर्मान
परित्यज्यै ,
मामेकं शरणं ब्रिज ।
अहँत्वा सर्वपापेभ्योः ,
मोछश्चामि माशुचा ।"
अतः
"प्रभु शरणागत बनेँ-बनाऐँ ,
अपना व अपनोँ का जीवन सफल बनाऐँ ।"
प्रभु जी आपको अपनी निर्मल भक्ति प्रदान
करेँ ।
_/\_
सभी आदरणीय व प्रिय मित्रोँ को सहृदय
प्रणाम् ।
जय जय प्रभु श्री शरणागत भक्तवत्सल की ।।





🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏







सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।


"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं


भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -


1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"


शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।


इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।


☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆


साथ ही

ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और
नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।

परमात्मा भी निभाते हैं सच्चे गुरु की भूमिका