लगभग 19 वर्ष की आयु में मैंने समर्पण की प्रार्थना करते हुए
जगदीश्वर से माता-पिता और गुरु का नाता जोड़ते हुए जनसेवार्थ की भावना से "जीवन के सर्वश्रेष्ठ सेवा मार्ग" पर चलाने की प्रार्थना की।
तत्पश्चात जगतप्रभु जी ने सचमुच
एक सच्चे और महान गुरु की भांति
पहले तो माया का दर्शन कराते हुए मानवीय विवशताओं और भटकावों का बोध कराया
फिर
माया से मुक्ति प्रदान कर प्रेम, शांति, भक्ति, मुक्ति और आनन्द आदि स्थितियां सहज ही प्रदान करते हुए।
निःस्वार्थ सेवा भाव से समर्पण भाव बांटने की प्ररेणाऐं भी प्रदान की।
मेरे प्यारे दोस्तों तन,मन,धन से की गई सेवा तो केवल कुछ काल तक ही प्रभावी हो सकती है
परन्तु
यदि हमें परमात्मा की शरण(आश्रय) मिल जाए तो
जीवन में असम्भव दिखाई देने वाली मनःशान्ति भगवद कृपाओं से सहज ही प्राप्त हो जाती है
तथा
जन्म-जन्मांतर की भटकन भी समाप्त हो जाती हैं।
यदि आप ईश्वरीय सत्यता की अनुभूतियां और कृपाऐं पाना चाहते हैं तो
एक बार अंजलि अथवा एक लोटा जल गिराते हुए
निष्पक्ष भाव से समर्पण की प्रार्थना अवश्य कीजिएगा
"भगवद आश्रय" से आपके जीवन में दुर्लभ भगवद कृपाऐं सहज हो जाएगी।
कृपया इस ब्लाग को किसी प्रकार का धार्मिक प्रचार ना समझें।
ये प्रेरणाएं आप पर भगवद् कृपा और
मेरे जनसेवार्थ संकल्पबद्धता के कारण जानिए ।
*सभी पन्थियों के लिए बहुमूल्य और कल्याणकारी*
*सबका मालिक एक है*
*मानव जीवन अनमोल है*
*परमात्मा से बेहतर इस संसार में कोई सहारा नहीं*
आपके प्रश्न, जिज्ञासा और सेवा ही हमारी प्रेरणा तथा लछ्य हैं
अतः कमेंट बॉक्स में निःसंकोच लिखें।
मैं यथा सम्भव समय निकाल कर आपके कमेंट का जवाब शीघ्र देने का प्रयास करुंगा।
आपका सेवक - एक प्रभु शरणागत भक्त (शिवप्रसाद
बर्मा)।