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प्रेम,शांति, आनंद,मोक्ष और भगवत कृपा प्रदायिनी अनुभव और अनन्त भावपूर्ण प्रेरणाएं

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Friday, September 25, 2020

7:48 PM

kaise jaen prabhu sharan mein ? samarpan, sharanaagati kya hai ? samarpan ke laabh hai?


kaise jaen prabhu sharan mein ? samarpan, sharanaagati kya hai ? samarpan ke laabh hai ?




सादर सहृदय नमस्कार मेरे प्यारे भाइयों बहनों ।
           🙏

आज हम इस वीडियो में एक बहुत ही प्रेरणादाई अनमोल भावपूर्ण अनुभव के माध्यम से यह जानेंगे कि

 समर्पण, शरणागति क्या है इसके क्या लाभ है? और
कैसे जाएं प्रभु शरण में ?

वीडियो देखने के लिए इस 👇 लिंक को क्लिक करें ।

मेरे प्यारे दोस्तों समर्पण कोई साधना, पूजा-पाठ अथवा मंत्र जाप नहीं है ।

समर्पण तो हमारे हृदय का वह विशुद्ध भाव है जिसमें हम स्वयं को परमात्मा के प्रति अर्पण कर देतें हैं ।
समर्पण अर्थात स्वयं को अर्पण करना।
 अर्थात 
अपने जीवन नैया की पतवार , जिम्मेदारी परमात्मा के हाथों में सौंप देना है।

यह वो आत्मकल्याणकारी भाव है
जिसमें अपने बुद्धि , ज्ञान की श्रेष्ठता का भाव अर्थात अहं-अहंकार ही परमात्मा को अर्पण करना होता है ।

मेरे प्यारे दोस्तों लगभग पिछले 15 सालों से फेसबुक आदि सोशल मीडिया के माध्यम से समर्पण भाव ही बांटता रहा हूं।

क्योंकि प्रभु जी ने एक सच्चे गुरु के रूप में इसी भाव को ही बांटना जीवन का सर्वश्रेष्ठ सेवा मार्ग बताया है।

वैसे तो सामाजिक दृष्टि से यह एक पागलपन ही लगता है परंतु
जनसेवार्थ संकल्पबद्ध होने के कारण मेरे लिए मान अपमान का मोह भी अधर्म और अनुचित है।

एक बार जब मैं गांव गया तो अपने स्वभाव अनुसार जनकल्याण की भावना से संपर्क में आने वाले भाई बहनों को समर्पण भाव के लिए प्रेरित कर देता था।

एक दिन जब मैं घर पर ही बैठा था तभी एक बहन आई और सकुचाते हुए मुझसे कहने लगी-

"भैया जी मुझे भी कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे जीवन में शांति आ जाए"

मैंने कहा बहन यह शांति तो मन की अवस्था होती है।
 जिसे हम सुख-दुख के बंधनों से ऊपर उठकर ही प्राप्त कर सकते हैं।
यह सुख दुख तो माया की व्यवस्था है।
जिसके कारण ही यह संसार चलायमान है ।

फिर मैंने उस बहन को शरणागति भाव को सरल शब्दों में समझाने के लिए पूछा कि -
 "क्या आप ईश्वर में विश्वास करतीं हैं यदि करतीं हैं तो कितना करतीं हैं"?

तब वो बहन कहने लगी कि -
"मैं बचपन से ही शिवजी की पूजा करती थी और जो मांगती थी वह मिल जाता था परंतु अब नहीं"।

मैंने कहा - "बहन यही तो एक भक्त के दुर्भाग्य की विडंबना है कि वह परमात्मा से अधिक स्वयं की बुद्धि और ज्ञान पर विश्वास करता है ।
इसी कारण ही हम वह सब प्राप्त नहीं कर पाते हैं जो हमारे लिए आवश्यक और अनिवार्य है।"


फिर मैंने कहा - "मान लो बहन दो अलग-अलग भक्त हैं ।
दोनों भक्तों ने अपनी पूजा, जप, तप आदि के माध्यम से भगवान को प्रसन्न कर लिया।'

एक भक्त को प्रभु जी ने दर्शन देते हुए कहा - "मांगो भक्त क्या चाहते हो ?"

वह भक्त बड़ा ही गरीब था सो उसकी दृष्टि में धन, वैभव, मान सम्मान ही श्रेष्ठ था ।
इसलिए उसने वैसा ही वर मांगा और प्रभु जी ने वैसा ही वर दे दिया।

अब प्रभु जी ने दूसरे भक्त को दर्शन देते हुए कहा कि - "मांगो भक्त कैसा वर चाहते हो ?

वह भक्त बड़ा ही सरल था । उसे अपनी बुद्धि और ज्ञान पर तनिक भी अभिमान नहीं था।

उसने श्री चरणों में लोटते हुए कहा - "हे प्रभु" आप इस जगत के स्वामी हैं इस जगत के रचनाकार हैं।
सो आपकी बुद्धि और ज्ञान के सम्मुख मेरा ज्ञान तो एक धूल के शूक्ष्म कण के समान भी नहीं है ।
जिससे मुझे उचित-अनुचित अच्छे-बुरे का तनिक भी ज्ञान नहीं है

इसलिए "हे नाथ" अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।
अब आपके ज्ञान और बुद्धि के अनुसार जो श्रेष्ठ लगे वही मुझे प्रदान करें।"



अब मैंने उस बहन से पूछा कि - "बताओ दोनों भक्तों में कौन सा भक्त श्रेष्ठ था ?"

उस बहन ने उत्तर दिया - "दूसरा भक्त" जिसने प्रभु जी के प्रति स्वयं को अर्पण कर दिया।

मैंने कहा - "बिल्कुल ठीक समझा बहन"

वास्तव में यह धन ऐश्वर्य , मान, सम्मान आदि स्थितियां जब तक हमें प्राप्त नहीं होती हैं ।
 तब तक हमें बहुत बड़ी उपलब्धि प्रतीत होती है ।
परंतु
जब यह हमें प्राप्त हो जाती हैं तो हमें इसकी आदत हो जाती है
जिसके कारण उनसे मिलने वाले सुख का बोध भी समाप्त हो जाता है ।

फिर हमारा वही मन सब कुछ उपलब्ध होने के पश्चात भी हमें दूसरे विषयों की ओर भगाने लगता है ।
जिससे मन की शांति कभी नहीं मिल पाती है ।

हालांकि मन की अशांति के अनंत कारण होते हैं।

उन कारण और पस्थितियों में भी हमारे मन की शांति स्थिर और स्थाई रहें यह बात सर्वव्यापी प्रभु जी भली-भांति जानते हैं ।

हमारे जीवन में कब किस क्षण अनहोनी घटित हो जाए इसका किसी को कोई ज्ञान नहीं होता है ।
 परंतु ऐसे अनहोनी से कैसे सुरक्षित रहना है ।
 इसका प्रभु जी को पूर्ण ज्ञान है।

जब हम भगवत परायण होते हैं अर्थात परमात्मा की शरण में होते हैं तो
भगवत कृपा से हमें वह दुर्लभ ज्ञान और आध्यात्मिक स्थितियां प्राप्त होने लगती हैं।
जिनसे हम दुर्गम परिस्थितियों में होते हुए भी आत्मिक शांति में स्थिर रहते हैं।

 हम सर्वदा सुख दुख के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

जो की बड़ी से बड़ी धन-संपत्ति भी प्राप्त करने के पश्चात भी दुर्लभ होती हैं ।

समर्पण के अनंत गुण और लाभ हैं जो भगवत कृपा से धीरे-धीरे हमें ज्ञात होने लगता है ।

अब सवाल ये है बहन कि -
 कैसे जाएं प्रभु शरण में ?

बहन यह तो हमारे हृदय का एक विशुद्ध भाव मात्र हैं
जिसमें हमें अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ही परमात्मा को अर्पण करना होता है ।
इसलिए
आप जिसकी भी भक्ति करते हैं करते रहें ।
परंतु
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि आप किसके भक्त हैं ।

 आपकी बुद्धि और ज्ञान में जो प्रभु श्री राम , श्री कृष्ण, शिव , निराकार-साकार , ईसा मसीह ,साईं राम , अल्लाह आदि के प्रति जो श्रेष्ठता का भाव है 
वो सब भूल जाएं क्योंकि सबका मालिक एक है।

और निर्मल और निष्पक्ष भाव से प्रार्थना करें कि -  

प्रार्थना नंबर -1
"हे जगदीश्वर" "हे जगत के आधार" मैं अपना जीवन आपको अर्पण करता हूं ।
मेरे जीवन के लिए क्या अच्छा है क्या बुरा अब आपकी जिम्मेदारी है।




प्रार्थना नंबर -2
"हे प्रभु" मैं नहीं जानता कि आप ईश्वर हैं या अल्लाह परंतु आप जो भी हैं जैसे भी हैं मैं अब अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं आप के सुपुर्द करता हूं इसे अब आप ही संभालिए।






प्रार्थना नंबर -3
"हे नाथ" अब अपने इस जीवन नैया की पतवार आपके हाथों में सौंपता हूं अब इस जीवन को आप ही संभालिए ।





आप इनमें से कोई भी प्रार्थना सुबह जागने के बाद बिस्तर पर ही बैठे बैठे अथवा रात में सोते समय भी कर सकते हैं ।

मेरे प्यारे भाइयों बहनों हम बचपन से ही जिस धर्म मजहब के संस्कारों के अनुसार पले और बड़े होते हैं ।

उनसे प्राप्त ज्ञान और उनके प्रति श्रेष्ठता का भाव-प्रभाव हमारे हृदय पर ऐसा होता है कि 
हम अपने अहम का पूर्णतया त्याग नहीं कर पाते हैं।

इसलिए प्रातः स्नान के बाद एक लोटा यह अथवा एक अंजलि जल लेकर उसे गिराते हुए समर्पण की प्रार्थना एक बार जरूर करें।

ऐसा करने से हम परमात्मा के प्रति स्वयं को अर्पण करने के लिए संकल्पबद्ध हो जाते हैं ।

जिसके कारण यदि हमारे समर्पण भाव में अशुद्धि हो तो भी वह पूरक हो जाती है ।

इसलिए समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार जल के साथ अवश्य करें 
और
अपने बच्चों के जीवन को भी आरक्षित-सुरक्षित करने के लिए उनसे भी करवाएं ।


मेरे प्यारे भाइयों बहनों आपके इस सेवक की समर्पण की प्रेरणा कैसी लगी यह कमेंट में जरूर बताएं ।

यदि कोई जिज्ञासा अथवा प्रश्न हो तो कमेंट में जरूर लिखें।
आपकी जिज्ञासा ही मेरी प्रेरणा है।

जनहित में इस वीडियो को शेयर जरूर करें।

मैं इस चैनल के माध्यम से इससे भी अधिक भावपूर्ण और प्रेरणादाई अनुभव और भगवत प्रदत अनमोल ज्ञान प्रसाद बांटता रहूंगा ।
जिससे आपके जीवन में शांति प्रेम आनंद और अनंत भगवत कृपाओं का प्रादुर्भाव हो।

इसलिए हमारे इस चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें ।

जिससे आपको हमारे नए वीडियो की सूचना मिलती रहे।

इसी के साथ ही मैं इस वीडियो को यहीं विराम देता हूं
फिर मिलेंगे किसी प्रेरणादाई अनुभव के साथ।

प्रभु जी आप सभी को अपना निर्मल आश्रम प्रदान करें ।

।। जय श्री हरि ।।


🙏 आपके इस सेवक का प्रयास - "परमात्मा के द्वारा आपके जीवन में शांति ,प्रेम और आनंद का विस्तार। 🙏 आपके शंका, समाधान और सुझावों को कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें। जिससे हमें अधिक से अधिक प्रसन्नता और प्रेरणा भी मिलेगी।
4:34 PM

Bhagavat Gita all part+Peace of Mind in Hindi | भागवत गीता | अनमोल वचनामृत परमात्मा का

Bhagavat Gita all part+Peace of Mind in Hindi भागवत गीता | अनमोल वचनामृत परमात्मा का जो जीवन धन्य कर दे।





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श्रीमद् भागवत गीता

🙏 श्रीमद् भागवत गीता🙏

क्या भागवत गीता सच में परमात्मा के ही द्वारा दिया गया दिव्य ज्ञान है
अथवा किसी संत महात्मा या पंडितों की रचना , कल्पना है।
इस सत्य का ज्ञान आपको आप ही हो जाएगा
यदि आप नीचे दिए गए प्रार्थना को एक बार स्वयं सच्चे हृदय से कर लें।
जो कि अर्जुन के द्वारा किए गए प्रश्नों के अंत में परमात्मा के द्वारा अपनी ओर से दिया गया दिव्य ज्ञान है
जिसे मैंने अपने जीवन के अनुभवों में पूर्ण सत्य और सिद्ध पाया है।

"श्रीमद्भागवत गीता" संपूर्ण मानव जाति के लिए परमात्मा के द्वारा दिया गया अनमोल उपहार है।

🙏 जय श्री हरि🙏






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🙏🏻
आप पूजा,पाठ,योग, साधनाएं कुछ भी ना करें केवल कर लें ये एक छोटी सी प्रार्थना बस एक दिन एक लोटा अथवा एक अन्जलि जलार्पण के साथ। 

भागवत गीता का अंतिम भाग और मेरा स्वयं का अनुभव भी हमें यही ज्ञान देता।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों बहनों।
जय जय श्री राधेकृष्णा।

"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"


शंका ना करना 
  ऐसा करने वाले लोगों ने बाद में स्वयं भी मन की शांति मिलने का दावा किया है ।

क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए 
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है

अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें जीवन में वह धन मिलने लगता है जो हमारे जीवन के साथ भी सार्थक होता है और जीवन के बाद भी ।

क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।

"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी, भवतारिणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा या एक अंजलि जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -


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1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।



2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"



3. "हे जगत पिता" "हे जगदीश्वर" ये संसार आपको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते है कोई अल्लाह कहता है तो कोई ईश्वर, कोई ईशा पुकारता है तो कोई वाहेगुरु
 परंतु हे नाथ आप जो भी हैं जैसे भी हैं अब मैं अपने आप को आप की शरण में सौंपता हूं ।


4. हे जगत प्रभु आपका सच्चा स्वरूप क्या है इस जीवन का उद्देश्य क्या है यह मैं नहीं जानता ।
अब मैं जैसा भी हूं खोटा या खरा स्वयं को शिष्य रूप में आपको अर्पण करता हूं।
आप समस्त जगत् के गुरू हैं अतः आपसे आप में आप मेरे भी गुरु हैं 
हे शरणागत भक्तवत्सल अपने शरणागत को शिष्य रूप में स्वीकार करने की कृपा करें।


प्यारे दोस्तों  "शरणागति"  का अर्थ है - "अपने मन का समस्त अहँकार अर्थात अपने ज्ञान और बुद्धि की श्रेष्ठता का भाव ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना करते समय यह भूल जाएं कि इस संसार में ईश्वर ही सत्य है अल्लाह ही सत्य हैं ईशा ही सत्य है 
क्योंकि
यह वह कट्टरता का भाव है जिसके आधीन होकर हम एक ही ईश्वर को अनेक रूपों में बांटते और अनुसरण करते हैं

ऐसा हमारे अहंकार भाव अर्थात जगत व्यापी माया के कारण जानिए
जिसके वशीभूत हो हम एक ही ईश्वर को अनंत रूपों में बांटते और नए नए पंथ-मतों का निर्माण करते जा रहे हैं ,
इसलिए
कम से कम समर्पण की प्रार्थना करते समय निष्पछ भाव से ही करेँ ।
आपके एक हृदयगत समर्पण पर मात्र से ही भगवत कृपा से धीरे धीरे आपके जीवन में सत्य असत्य का बोध हो जाएगा 
तथा
जीवन शांति मुक्ति भक्ति प्रेम और आनंद से भरपूर हो जाएगा।


कृपया इस प्रेरणा को प्रर्दशन अथवा धार्मिक प्रचार ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
क्योंकि
प्रभु जी ने एक घटना चक्र के माध्यम से मुझे निस्वार्थ सेवा भाव से जीवन जीने का संकल्प कराया था।

☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि 
हमारे समर्पण में अनिवार्य विशुद्ध 
भावनाओं के अभाव को पूरा करता है।

जो संकल्प के माध्यम से निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆

साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे और जैसा भी करवाएंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।

समर्पण में परमात्मा के प्रति केवल भाव से स्वयं को अर्पण ही करना होता है
शेष कार्य प्रभु जी स्वयं कर और करा देते हैं।

🙏🏻
।।जय श्री हरि।।




🙏 आपके इस सेवक का प्रयास - "परमात्मा के द्वारा आपके जीवन में शांति ,प्रेम और आनंद का विस्तार।

 🙏 आपके शंका, समाधान और सुझावों को कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखें। जिससे हमें अधिक से अधिक प्रसन्नता और प्रेरणा भी मिलेगी।

🙏
आपका अपना सेवक - प्रभु शरणागत भक्त ।